अंदाज़ ए गुफ़्तगू ये लर्ज़िश ए बयान कहता है mohabbat shayari ,
अंदाज़ ए गुफ़्तगू ये लर्ज़िश ए बयान कहता है ,
इश्क़ की आग लगी हो न हो फ़िज़ा में यूँ ही धुंआ ये उठा तो है ।
मोहब्बत के सारे मायने बदल जाते ,
गोया तब्दीलियत के मिजाज़ तबीयत से समझ में आते ।
मोहब्बत की रहमत इस कदर बरस रही है मुझ पर ,
दिल के छाले लफ्ज़ बनकर नग़मों में बह रहे हैं झर झर।
नज़र में उतरे हों जिगर में उतरो तो सही ,
बस ख़्याल ए यार की चाहत से इश्क़ के नायाब मोती मिलते नहीं ।
इस मंज़िल ए मुक़ाम पर किस हाल में पहुंचे हैं साहेब ,
दिल ज़ार ज़ार हर ज़ख्म रेज़ा रेज़ा है ।
अमन के परिंदे कब सब की आवाज़ सुना करते हैं ,
जो दिल को नागवारा गुज़रे हरगिज नहीं वो काम किया करते हैं ।
शहर के धुएँ में जान देती ज़िन्दगी ,
क्या बात है की गाँव के आगोश में पनाह माँग रही है ।
अपनी कमज़ोरियों को मजबूरियों का नाम लगाकर ,
जाने किस सुर्खाब ख़्याली में कहाँ भागी जा रही है ज़िन्दगी ।
दौड़ती भागती ज़िन्दगी से मैंने कहा तनिक देर ठहर दम भर ले तो सही ,
मुस्कुरा के बोलती है मौत से पहले पहले मुझे मरने की मोहलत भी नहीं ।
लाख़ रानाइयाँ हों जश्न ए महफ़िल में ,
लुत्फ़ तो आता है ग़म ए उल्फ़त में ये मज़ा फिर कहीं और नहीं ।
दिमाग़ लाख़ कारोबार ए जहान में मशरूफ़ सही ,
गोया दिल तो बस ख़्याल ए उल्फ़त में मसगूल रहा करता है ।
ज़िन्दगी थक के मौत न मुक़म्मल कर दे कहीं ,
बस आहों के लम्स और साँसों की रफ़्तार बनाये रखना ।
हलाल जानवर हों या इंसान फ़र्क पड़ता नहीं ,
सियासत और सियासी हर हाल में मदमस्त रहा करते हैं ।
जनाज़ों के काँधो पर सजती है पालकी इसकी ,
सियासत का कोई धरम ओ ईमान न कोई मज़हब होता है ।
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