चाहते तो हम भी जाग कर सवेरा कर देते good morning shayari,
चाहते तो हम भी जाग कर सवेरा कर देते ,
मगर सुर्ख आँखों से टपके लहू ने कहा किसको उजाला चाहिए ।
हम परिंदे हैं खुले आसमानो के ,
रेत की जलती ज़मीनो पर कब बसर करते हैं ।
डूब जाते हैं फ़लक के टूटे तारे जिन उजालों में ,
हमें अब से अभी से वो एक नया सवेरा चाहिए ।
कभी आमने सामने बैठो तो हो गुफ़्तगू अपनी ,
अब तो ख़याल ए जुस्तजू में दिल की ग़ज़ल नहीं होती ।
इश्क़ ज़ौक़ ए शायरी है साहेब सब सेहराओं से गुज़रता नहीं ,
गुज़र जाता है जिन दरियाओं से उन दरियाओं की प्यास कभी बुझती नहीं ।
लर्ज़िश ए लब ने थाम रखे थे हाल ए दिल गोया ,
इश्क़ की महकी रातों में जज़्बात बहक जाते हैं ।
ये मोहब्बत भी बरखा बहार सी है ,
कब एकजाई थम कर एक जगह बरसती है ।
वो दौर ए इश्क़ था जब हर लफ्ज़ में सुख़न थे ,
ये वक़्त हिज़्र का है हर बात में दिल के छाले नज़र आते हैं ।
क्या जागती आँखों में अब ख्वाब नहीं है ,
सुर्ख आँखों में कब तलक लगाओगे सुरमा ,
क्या ज़ख्म दिल में छुपाकर कहोगे दाग नहीं है ।
दिल ओ जान के मुताल्लिक तो यहां कुछ भी नहीं,
आजकल इश्क़ तो बस खाली जिस्मो का धोखा है ।
एक वज़ूद की तलाश थी जुगनुओं को ता उम्र ,
फिर यूँ हुआ की ज़िन्दगी ने काली रात का अँधेरा दिखा दिया ।
किससे फ़रियाद करें किसको हाल ए दिल सुनाएँ ,
बाद ए आज़ादी के भी ज़मीन जोतने वाला खुद के सीने में हल चलाये ।
जश्न ए आज़ादी भी उनकी सरपरस्ती में हाज़िर है ,
दूसरों के हक़ के निवाले जो चांदी की थाली में खाते हैं ।
फ़लक के शामियाने में जश्न ए आज़ादी का आलम है ,
ज़मीन का ज़र्रा ज़र्रा ग़म ए गर्दिश में डूबा है ।
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