आज फिर दो कुंभकरणों का मेल हुआ romantic shayari ,
आज फिर दो कुंभकरणों का मेल हुआ ,
आज फिर सियासत के पाँव भारी है ।
वादिये हुश्न का नज़ारा इतना दिलकश न था ,
कुछ मेहरबानियाँ हमारे लबों की समझो की हर नज़ारा महलक़ा बना दिए ।
मौत हुश्न के चौखट पर मुक़र्रर थी ,
इश्क़ बैरंग ख़त सा बना दर दर घूमता रहा ।
टूट कर अश्क़ों की टपकती हैं बूँदें ,
नाज़ुक था दिल इतना भी इश्क़ में घायल तो न था ।
दिल के नाज़ुक तारों सा वादा था तेरा ,
एक तार टूटा ज़िन्दगी की सरगम बदल गयी ।
हमसे दिल ए नाज़ुक भी सम्हाला नहीं जाता ,
गोया उनसे दिलों के दिलबर निकाले नहीं जाते ।
अरमानों के जलते बुझते सरारों से नाज़ुक क्या था ,
दिल जला के आये आशिक़ों से तज़ुर्बा ए इश्क़ मत पूछो ।
ज़र्द पत्तों से आहट होती है ,
न जाना इश्क़ की गली में सैकड़ों दरीचा ए दिल बनाये बैठे हैं ।
जो थम जाती है फर्श पर तेरे पाज़ेब की झन झन ,
तेरे कदमों की थिरकन से पहले दिल की धड़कन मचल सी जाती है ।
तेरी नज़रों की ज़ुम्बिश ने थाम रखे थे सुख़नवर कितने ,
जो तेरे लब थिरक जाते तो बज़्म सर ए शाम बहक जाती ।
सारी नाज़ुक ख़्याली वादी ए ग़ुल में ही नहीं ,
अंजुमन की कलियाँ भी कमसिन हैं नाज़ुक हैं ।
परदे और भी उठेगे अभी लाशों से,
रूहों की नुमाईश तो अभी बाकी है ।
अक्सर मासूम शक्ल ओ सूरत वाले ,
सुना है तिलिस्मी गज़ब के होते हैं ।
वहाँ बादलों के मिलने से आग लगती थी ,
यहाँ दिलों के मिलने का सुबा नहीं होता ।
मेहबूब बिकता है ख़ुदा बिकता है ,
कारोबारी ज़माने में बोली लगाओ वाली पत्थरों की शक्ल में इंसान बिकता है ।
जाम कम था क्या मयख़ाने में वाली ,
गोया आँख भर के पैमाना सारा पिला दिया मुझको ।
मौसमो सी लगती है ये मोहब्बत ,
विसाल ए यार हिज़्र फिर तन्हाई ।
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दो जवाँ दिल क्या मिले तन्हा घनेरी रातों में ,
अरमानो में साज़ बजने लगे और मुशायरा सजने लगा खुले आसमानो में ।
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