उठती थी खेतों में ढेंकुर की चुर्र मुर hindi literature ,
उठती थी खेतों में ढेंकुर की चुर्र मुर ,
सका गयी रहट के बैलों की घंटी भी कहाँ जाने।
नहीं आता मज़ा चित्रपट की विविध भारती में ,
साजन जी डी टी एच के ऍफ़ एम् में वो रेड़ुआ का मज़ा है कहाँ ।
अब तो मोर अभाभट अहिमक लक्का ,
सांझ सकारे पल्सर २२० की रेस लगावै हम जाने ।
बिहाने का कलेवा दुपहरिया का लंच होइ गया ,
अब तो काज गमन में भी कढ़ी भात नहीं हक्का नूडल्स बने है हम जाने ।
खो गए परदनी लंगोटी कक्का पहने पतलून कान माँ ठूसे फून,
मागे तम्बाकू चून बलम जी हम जाने ।
अब तो घूंघट भी हो गए शर्मिंदा ,
टीवी सनेमा का चुम्मा ही बस है ज़िंदा मर जाओ बिना डिस्पिरिन की गोली ।
चिल्लम चपाटी ठर्रा चापे दिन दहाड़े मटके डॉक्टरबा,
काज ब्याह माँ बसी न होती ,
सरपट भागे बिहान सकारे ।
दुलहा पंडित और दुल्हनिया सगळी रात मरे अहिमक ठण्ड के मारे ।
भाग बराती ठाढ़ दुआरे माघ पूस की बात ,
ठाड़ी पड़ी जो ऐसी ठण्ड की हो गयो परम्पराओं पर जैसे बज्र कुठाराघात ।
घंटन बैठे रगड़त ऐड़ी , सौख न धरी खटाये ,
नयी नवेली नार कसम से गज़ब क़यामत ढाये ।
पुटकी वाला भात नयी नवेली नार पकाये ज्योनार ,
गैस सब्सिडी ख़त्म होइ गयी कैसे करम दण्ड हमारे ।
जेतबा से पिसना पीस के गीले काँदौ माँ बटुआ धर दी छूँछ ,
करम जले की चाकरी किश्मत गयी अभागन रूठ ।
तोरे राय नून चोकरा से कौनौ भूत भागे न भागे ,
दो पैरासीटामोल एक एंटिबॉयोटिकवा से बुखार होइ जावेगा दूर ।
तुमहू का गर लागे लाज मोरी छोहरिया ओढाई के आ जाओ आज ,
मैं बिरहन तज लोक लाज सब नटवर नागर ना जाओ आज ।
बन बन भटके जियरा बयार , मैं बिरहन तस बारी रे ,
मंत्र मुग्ध श्यामल अधिलोचन निसदिन मोरे नयन तोहका निहारी रे ।
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