कोख में ही न बेईमानी होती अगर good morning shayari,
कोख में ही न बेईमानी होती अगर ,
और बच्चों के साथ माँ बाप की लाडली भी खेलती घर घर ।
शहर ए मुजस्सिम में इंसान की कोई बख़त नहीं प्यारे ,
थक गए जो ईमान बेंचते बेंचते ईमानदारी का तमगा लगाए फिरते हैं ।
जिस्म बेचने में मजबूरी रही होगी उसकी ,
तू क्या भूखो मर रहा था जो अपना इमान बेंचकर आया ।
बड़े सस्ते में बिक जाता है ईमान,
वकील की कोट सा हर शाम घर खूँटी में टंग जाता है ईमान ।
मुजस्सिम ए ईमान को बुतख़ानों में सजा दो ऐसे ,
दादा परदादा की तस्वीर पर लटकती तस्बीह ए मुर्दा हो जैसे ।
अब तो ईमानदारी के नाम से भी डर लगता है ,
कहीं लोग नेता न समझ लें मुझको ।
यूँ सरे राह निकल आते हैं वो इस नज़ाक़त से ,
पर्दानशीनों के भी ईमान डोल जाते हैं ।
न समझ में आये तो नादानी सही ,
ईद का चाँद सबका है मेहबूब बस एक का ही नहीं ।
आग लगती है तन्हाई में ,
रोज़ हर रात जाने कैसे बरस जाती है ।
आदम ए सूरत को तवज्जो देते थे नहीं ,
अब अक्सर चाँद तारों की बात किया करते हैं ।
इतनी नफ़रत से न देखो कि दिल रुआंसा है ,
दर्द ए दिल हलक तक भरा भरा सा है ।
ईंट गारे से ओहदे का पता चलता है ,
मलबे के ढेर ने ईमारत कि औक़ात बता दी हो जैसे ।
कौन रोता है किसके मरने पर ,
कुछ ज़रूरतें कुछ दिखावा रुला देता है ज़माने को ।
मुर्दों से किरदार निकल आते हैं ,
जनाज़ा किसी का बेरोज़गार नहीं होता ।
कुछ हकीकत है कुछ फशाना है ,
ज़िन्दगी ख़ुशी और गम का बस तराना है ।
एक छोटी सी बस्ती का नाम जहान करके ,
वो चला गया जहान को अलविदा कहके ।
ज़रूरतें बदल देती हैं इंसानी फितरतें ,
मरने के बाद मुर्दे के पास कौन जाता है ।
डर न जाए आदम ए सूरत से ही इब्लीस ,
गोया मैय्यतों में भी लोग सज संवर के जाते हैं ।
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