ग़म ए ख्वाहिश के बुलबुलों की नज़ाक़त देखो dard shayari ,
ग़म ए ख्वाहिश के बुलबुलों की नज़ाक़त देखो ,
आँसुओं में पिघल जाते हैं शाम ए महफ़िल में पहुचने के बाद ।
शबनम से भिगोया कभी पुरनम से भिगो डाला ,
आती थी बहुत यादें तेरी यादों को आँसुओं में बहा डाला ।
खरीद सकता तो खरीद लेता हर ग़म तेरे ,
एक भी शबनमी क़तरा तेरे वज़ूद से आंसुओं में ज़ाया होने नहीं देता ।
वो जल के बुझ गया जो ज़हन में शोला था ,
फ़िज़ाओं में आँसुओं की ऐसी फुहार चली ।
लहरों के साथ दरियाओं में दूर निकल जाता है ,
फिर यादों का बुलबुला हर शाम मेरे पाओं में लिपट जाता है ।
जितने भी गुज़रे इन सेहराओं से होकर घायल गुज़रे ,
कुछ पानी के बुलबुले थे कुछ शीशे के आर पार से गुज़रे ।
रगों में बुलबुला बनता नहीं गरम जोशी से ,
एक उम्र भी रफ्ता हुयी लबों से हुक्काह पिए बगैर ।
बड़ा ग़रूर था निगाह ए शोखी ओ नज़र पर ,
जाने हुयी क्या बात वो नज़रें शबनमी हो गयीं ।
तुम नज़रों से शबनमी बात करो ,
तेरे रूबरू मेरे लफ्ज़ सूख जाते हैं ।
बहर ए बागां में वो बहार नहीं ,
शबनमी ओस की बूँदें हिज्र ए तन्हाई में झुलस गयी जैसे ।
कितने जले सफ़ीने बहर ए माहताब में ,
कुछ लफ्ज़ शबनमी से कुछ जज़्बा ए खार से ।
रात दिन महीने सालों की रुख्सती के बाद ,
हर शाम लब पे आता है तेरा नाम बेरुख़ी के बाद ।
मेरी शायरी का गुर ही नहीं मेरा हुनर भी देख ,
तेरी रुख्सती लफ़्ज़ों में पिरोता रहता हूँ ।
मैं तन्हा था शायरी तन्हा ,
अब मैं और मेरी ग़ज़ल साथ साथ चलती हैं तेरी रुख्सती के बाद ।
हम मोहब्बतों का फिर दौर चला जायेंगे ,
वो गुस्ताख़ निगेहबानी से रुख़्सत कर दें ।
उफ़ नज़र न लगे उनकी मुस्कराहट को ,
सज़दे में उनके नज़ारे भी नज़रे झुकाये ।
pix taken by google