गौधूलि की बेला है पगडण्डियों पर गौएँ तितर बितर alfaaz shayari,
गौधूलि की बेला है पगडण्डियों पर गौएँ तितर बितर ,
चौखट पर आँखें हर रोज़ टिकी गउअन का चरवाहा गया किधर ।
हिंदी की बिंदी को नया आयाम दें ,
कण कण में रज फाँकती सुबह की पहली किरण को प्रणाम दें ।
ऐ मुझे ज़िन्दगी देने वाले हंसी आती है तेरी सादगी पर ,
खुद को सादा रख कर मुझमे सारे रंग भर दिए ।
हर चश्म ए चरागों से बज़्म रोशन होती नहीं ,
इस रात की सुबह न हो और शमें जलाइए ।
बारहां इश्क़ से दिल जुदा नहीं होता ,
जब जहां होता हूँ मैं तब वहाँ नहीं होता ।
हर अक़्स ए नुमाइश का ये दिल भी तलबग़ार कहाँ ,
सामने हर शक़्स दीदा ए पसंद हो ज़रूरी तो नहीं ।
यूँ ही नहीं बनता कोई आईना अक़्स की सूरत ,
जाने किस तरह उसे दिल से उतारा होगा ।
ज़माने भर की पसंदगी की ग़र परवाह करते ,
खुद का नशेमन जला के लोगों के घरों में उजाला करते ।
कौन किसको पसंद करता है ,
वो तो मज़बूरियां है जो साथ साथ रखती हैं ।
हम चाँद तारों को पसंद करते हैं ,
गोया आरज़ू ए यार बसा कर दिल में फिर सुबह ओ शाम करते हैं ।
इश्क़ ए आफत कहूँ या इश्क़ ए रज़ामंदी ,
हर दौर ए पसंदगी में दोनों क़ज़ा ही ही होगी ।
शब् ए माहताब ओ रूबरू ए विसाल ए यार ,
तक़दीर मिली ऐसी आईन ए ज़र ने थोड़ी मोहलत तलब करी ।
ख़ुलूस ए आशिक़ी ओ जज़्बा ए इश्क़ लबालब ,
एक मुलाक़ात और इश्क़ का सिलसिला ही ख़त्म ।
साहिल को सफ़ीने की दरकार हो न हो ,
दरियाओं का साहिल से मिला भी मुक़म्मल ही नहीं ।
चाप कदमो के मिला कर चलता है ,
वक़्त सूरज है तो चाँद कभी ।
शाम से नयनो में नमी सी है ,
बुझा बुझा हैं मन अंधेरों में तिश्नगी सी है ।
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