दरमियानी रात के दायरे में अँधेरा है बहुत dard shayari ,
दरमियानी रात के दायरे में अँधेरा है बहुत ,
यही सोचकर शायद शब् ए फ़िराक शहर भर से दूर होती गयी ।
रास्ता ख़त्म हो जाता है एक मंज़िल के बाद ,
बस इंतज़ार ख़त्म नहीं होता एक मुद्दत के बाद भी ।
शहर भर के कत्लगाहों के आज के अब के अभी नाम बदल डालो ,
हुश्न ए सरपरस्ती में दिलरुबा चाहे या जान ए जिगर रखवा लो ।
ज़िन्दगी के सफहों में पलटते फ़लसफ़े हैं ,
कुछ आह का फुवां है कुछ ख़्वाब मनचले हैं ।
यूँ नहीं की दिल ए नादाँ का दर्द ए मोहब्बत से सरोकार नहीं ,
ज़ख्म छुपा रखते हैं तहों में आह की नुमाइश करने वाला अपना किरदार नहीं ।
कितनी उम्र ए ज़ाया की एक मुख़्तसर सी चाहत के वास्ते ,
हर दौर ए मोहब्बत का बस हिज़्र ए तन्हाई से वास्ता रखकर ।
रातों की भी क्या चलती फिरती तस्वीर हुआ करती है ,
गुज़रते हैं सभी नज़रों से ज़हन में किसी की ताबीर नहीं हुआ करती है ।
इन रास्तों पर मुशाफ़िर हर रोज़ मिलते हैं ,
मगर कुछ मुलाक़ातें हमेशा रास्तों के साथ चलती हैं ।
जाने कितने कारवां बनते बिखरते गए ,
ये राहें कल भी तन्हा थी ये राहें अब भी तन्हा हैं ।
राह ए मंज़िल ने रास्ता खुद ब खुद साफ़ कर दिया ,
किसी को गुनहगार कहा किसी को माफ़ कर दिया ।
रास्ते की आज़ादी कहें या फितरत में ढलना ,
कुछ दूर साथ चलना फिर साथी बदलना ।
कभी सोचा नहीं उस रास्ते में बढ़ते आगे ,
कितने सावन बीते होंगे किसी के कितनी रातें काटी होगी किसी ने तन्हा जागे ।
दिलों के दरमियाँ ये दायरे तो कम न थे ,
जो एक दूजे के ज़हन में सरहदी लक़ीर खींची गयी ।
दाद देता हूँ तेरी तस्वीर बनाने वाले को ,
हुश्न ए मुजस्सिम उतारा क्या कम था ,
एहसास ए ज़िन्दगी भी डाल देगा उम्मीद न थी ।
pix taken by google ,