दरूं ए इश्क़ फैसला लाज़मी न होता sad shayari ,
दरूं ए इश्क़ फैसला लाज़मी न होता ,
उल्फतों के दरियाओं में डूबकर भी कोई प्यासा नहीं होता ।
अभी तो रात आकर के ठहरी है मेरे दामन में ,
दिन के उजालों का मेरे नशेमन में कोई ठौर नहीं ।
इश्क़ का मारा था इश्क़ में मारा है इस कदर ,
दर्द के सफहों में शायरी के लफ्ज़ दब गए जिस कदर ।
अभी तो नाकाम ए इश्क़ की खुमारी है ,
मुक़म्मल ए मोहब्बत का सुख़नवर और भी शानदार होगा ।
दिल बेकाबू न शोखी ए रुख पर दिखते नाज़ ओ नखरे तेरे ,
बिला वजह ही नहीं यूँ सर ए शाम लरज़ते अलफ़ाज़ तेरे ।
खबर ही न हो मेरे मिजाज़ ए मौज की उनको ,
इसलिए भी हम बस अंधेरों में बसर करते हैं ।
सियासत ए इश्क़ का तकिया कलाम है प्यारे ,
दिल है मेरा पैरवी किसी और की करता है प्यारे ।
हर बात पर वाह वाही लूटने की आदत है हर शख्स को यहां ,
नाकाम ए हुनर की भी न नुख्ताचीनी कीजिये ।
अच्छा चलते हैं ख्यालों में बसर कर लेना ,
गोया अब इस की शहर हो न हो ।
कुछ सफहों में समा गयी क़ायनात सारी ,
हर्फों की करामात तिलस्माती है ।
उनसे कौन जिरह छेड़े कौन तोहमत ए इल्ज़ाम लगाए ,
हम अपनी रज़ामंदी से इश्क़ किये हैं और बर्बाद हुए हैं ।
सबकी तक़दीर में महफ़िल ए रानाइयाँ नहीं होती ,
कुछ के जुगनू बस अंधेरों में ही चमकते हैं ।
आफ़त ए इश्क़ का दौर है साहेब ,
जान की खैर समझो की बचके आये हैं ।
कितने पड़े हैं अब भी इश्क़ के कूचे मे ,
कितने खुद की मैय्यत सजा के आये हैं ।
ख्यालों में पिछली बारिश की अब भी खुमारी है ,
अब के मौसम में ऐसी ग़ज़ब की गर्मी है दिल के छाले भी सुसक जायेंगे ।
कब तक खामोशियों से ज़ुल्म सहते रहेंगे हम ,
अंधेरों में उठी रोशनी को मुक़म्मल जगह मिलनी ही चाहिए ।
pix taken by google
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