नज़ाकतें बढ़ गयी हैं एक मेरे इश्क़ के बाद romantic shayari ,
नज़ाकतें बढ़ गयी हैं एक मेरे इश्क़ के बाद ,
कौन है जो तिज़ारत ए हुश्न पर बार बार ऐतबार किया करता है ।
सहूलियत ए फ़रमान की ख़ातिर ,
ज़माने भर में इश्क़ बचा है बस ख़ुलूस ए अरमान की ख़ातिर ।
सारी बस्ती बदल गयी वक़्त की फ़ितरत के साथ ,
कौन अब यलगार छेड़े शहर ए मुंसिफ के ख़िलाफ़ ।
कौन कब कहाँ कुछ नहीं होता ,
बारहां ए इश्क़ के दरुं क्या क्या कुछ नहीं होता ।
ज़रा सी जान अटकी है एक सवाल की ख़ातिर ,
शिकारी हुआ शिकार किस हासिल ए जवाब की ख़ातिर ।
रिश्तों की गाँठ भी इतनी मज़बूत बाँधिये,
गोया ऊब जाए कोई बड़ी सहूलियत से खोल ले ।
कौन होता है मुफ्लिशी में फुरक़त ए शाकी ,
क़ुर्बत ए इश्क़ ही मैकदों तक खींच लाता है ।
शबनमी चोट से घायल है हर शख्स यहां ,
कौन बेदाग़ बचा है ज़माने में ख़ता ए दिल से ।
कौन कितना बड़ा सौदाई हो ,
कारोबार ए इश्क़ के नफ़ा में भी नुकशान हुआ करता है ।
नफा नुकसानी की गर परवाह करता ,
जहां में कौन इश्क़ करता कौन इश्क़ में आहें भरता।
जितने ग़िरफ़्तार थे बेदाग़ बच निकले ,
फिर इश्क़ ए सज़ायाफ्ता के नाम गिनाता है यहां कौन ।
कौन तितलियों में रंग भरता है कौन भँवरे को राग देता है ,
जो इतराती है कलियाँ वन में कौन साज़ ओ सिंगार बना देता है ।
कौन आके ठहरा है मेरे कूचे में ,
धड़कने तेज़ थी बस इसके सिवा कुछ याद नहीं ।
कौन उठाएगा तेरे नाज़ ओ नखरे ,
जलवा ए हुश्न से हर शख्स यहां घायल है ।
आफ़त ए उल्फ़त सबको औक़ात बता देती है ,
बनने को बने कौन कितना बड़ा शैदाई है ।
फ़ितरत ए इश्क़ की तबीयत न पूछो ग़ालिब से ,
आफताब ए हुश्न से सारा शहर ही झुलसा जाता है ।
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