प्यास मैकदों में रोज़ बढ़ती है romantic shayari,
प्यास मैकदों में रोज़ बढ़ती है ,
फ़र्क़ पड़ता नहीं ग़र्मी की वहाँ सर्दी है ।
मौसम ए मिजाज़ जहाँ भर का समझ आता नहीं ,
एक बर्फ की चट्टान पिघले तो ग़र्मी में सुकून आये ।
ग़र्मी से ग़र बढ़ती हो प्यास जायज़ है ,
लोग आँखों में समंदर छुपाकर मैकदों का रुख़ करते हैं ।
चश्म ए तर आँखों में तैरता मंज़र ,
ज़र्द ख़्वाबों को मौसम ए तपिश से सुकून देता है ।
तेरे ख़्वाबों के हसीं लम्हो को मैंने पलकों में छुपा रखा है ,
जल न जाए तपन की ग़र्मी से , चश्म ए तर आँखों में डुबो रखा है ।
हकीकत कुछ नहीं फशाना है ,
इश्क़ के नाज़ुक हसीन लम्हों को मौज ए बहारा में फिर सजाना है ।
मौसम ए मिजाज़ रुख़ पर रख कर ,
वो हर नक़ाब जला आया खड़ी दोपहर में ।
जिस्म जले रूह फ़नाह हो जाए ,
पाँव के छाले फ़टे यार के बुलावे में जाना है तो जाना है ।
रात की ठंडक फ़ानी है वरना ,
दीदा ए यार के बाद कब सुख़नवर का कारोबार हुआ करता है ।
फ़लक़ पर दहकता सूरज ,
और रुख़ पर चढ़ता नक़ाब हट जाए तो मौसम ए ग़र्मी में बहार आ जाये ।
एक तो जमाल ए यार दूजा सर पर दहकता सूरज ,
दो दो आफ़ताबी हूरों को कैसे नक़ाब में छुपा लेता है ।
जाने कितने समंदर सुखा दिए इसने ,
फिर भी सुर्ख होठों की प्यास बाकी है ।
हर एक मंज़र बहार जैसे हैं ,
तू भी उतर के देख चश्म ए तर आँखों में कितनी राहत है ।
मर के भी साथ मुक़म्मल न रहा ,
सबने कांधा बदला गर्मी का वास्ता देकर ।
टपकते आंसुओं में भी राहत है ,
वरना मौसम ए ग़र्मी से मिट्टी में दबे जिस्म पिघल जाते हैं ।
ग़र्मी में झुलस जाये न अरमान भरे दिल के ,
मुर्दे भी अब क़फ़न ओढ़ के सोने की बात करे हैं ।
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