यूँ ज़हमत न कीजिये हुज़ूर दबे पाँव महफिलों में आकर shayari ,

0
2499
यूँ ज़हमत न कीजिये हुज़ूर दबे पाँव महफिलों में आकर shayari ,
यूँ ज़हमत न कीजिये हुज़ूर दबे पाँव महफिलों में आकर shayari ,

यूँ ज़हमत न कीजिये हुज़ूर दबे पाँव महफिलों में आकर shayari ,

यूँ ज़हमत न कीजिये हुज़ूर दबे पाँव महफिलों में आकर ,

की अंजुमन में गुलो ने खार के मोती अपनी पलकों से

उठाये हैं ।

 

कहीं घायल हुयी पाज़ेब कहीं नग़मा हुआ ज़ख़्मी ,

की महफ़िल में दिलों के टूटने के किस्से खूब उछले हैं ।

 

शहर भर के चरागों का सफ़र लम्बा सही ,

रात पोसीदा ए रोशनी से महरूम नहीं ।

bhoot pret ki sachi kahaniyan,

अपनी यादों से मुझे महरूम न कर ,

तिश्नगी दिल की लब पर शेर बनके आती है ।

 

जाने कहाँ तक धड़कनो के साथ चला जाऊँगा ,

मैं तन्हा सही तेरी यादों से महरूम नहीं ।

 

शहर के पत्थरों के बीच बच्चे कमज़ोर रह गए ,

मादर ए वतन की ख़ाक से ही बच्चे शेर बनते हैं ।

 

यतीम लुक़मा से महरूम यहाँ ,

हुकुमरान मुर्दों के हक़ की भी दावतें उड़ाते हैं ।

 

सारा का सारा शहर वल्दीयत से महरूम सही ,

मैं तन्हाइयों में सुख़नवर के साथ होता हूँ ।

 

मैं शहर की भीड़ में गुमनाम सा चलता रहा ,

गुल खिले कचनार के कब अंजुमन में अफ़साने बने ।

 

है हुश्न ही गर तेरा गरूर ,

तो इश्क़ के सदके में जान हम उतारेगे आज ।

 

आसमान में होंगे बादल बहुत ,

गोया ज़मीन की प्यास ने सातों समन्दर सोख रखे हैं ।

 

गगन में सँवरता है ज़मीन पर उतरता नहीं ,

फलक ये सोख निगाहों की प्यास क्यों समझता नहीं ।

 

उन आँखों की तिश्नगी तौबा ,

जो हर वक़्त सात समन्दर में डूबी रहती हैं ।

 

कर्त्तव्य और निष्ठा की पराकाष्ठा है नारी ,

रौद्र रूप में और भी बलिहारी है नारी

 

घर घर सास बहू के किस्से होते थे ज़माने पहले ,

अब तो बस किटी पार्टियों में सीरियलों के किरदार मिलते हैं ।

 

कभी लक्ष्मी कभी दुर्गा कभी काली कभी चण्डी ,

कभी तंदूर की लौ में कभी फांसी में तू लटकी ।

dard shayari 

जब से पहना है हिरोइनों ने जीन्स बूट थिएटरों के ,

हीरो हुए गे सिल्वर सेलुलॉइड स्क्रीन में नारियों के कब्ज़े होने लगे ।

pix taken by google