शाम ए बज़्म में शायरी से धड़कती है रगों में सरगम love shayari ,
शाम ए बज़्म में शायरी से धड़कती है रगों में सरगम ,
अब इस रात का अंजाम ख़ुदा ही जाने ।
शायर जब भी किसी शायरी में फ़नाह हो ,
तह ए दिल की गुज़ारिश है ये अंदाज़ ए गुफ़्तगू बस फ़लसफ़ों में बयान हो ।
आदमी में थोड़ा इंसानियत भी लाज़मी है ज़फर ,
गोया लीपे पोते बुतों की बुतक़दों में कमी ही नहीं ।
धुद्ध खा रहे हैं बुतक़दों में बुत भूत बनकर ,
गोया लीपा पोती करके इंसान ही भगवान् बन गया ।
नज़रों की चुगलियों ने खोले भेद दिल के सारे ,
कैसे रात से पहले फिर अँधेरा होने को है ।
ज़र्द पत्तों पर न टपकते आंसू तेरे ,
गोया बहार ए हिज़्र भी कोई दास्तान कहती ।
कहाँ हो आजकल दीदार नहीं होता ,
दीदा ए यार में मसगूल हो ऐतबार नहीं होता ।
कुछ वक़्त की रहमत है कुछ ऊपर वाले के फ़ज़ल ओ करम ,
दो चार जुमलों मे ज़िन्दगी के तमाम फलसफे हम भी जोड़ लेते हैं ।
जो समझते हैं अब्वल दर्ज़े का नमकहरामी है हम में ,
बस एक बार नमकहलाली का मौका देदें ।
रिसा गयी हैं क़ायनात भर की नैमतें सारी,
तेरी नज़रों की अदावतों में हैं ज़हमतें सारी ।
अपनी बर्बादियों के लिए किस दरिया ओ साहिल को तोहमत देता ,
जब किसी ठौर ठिकाने में मैं ठहरा ही नहीं ।
क़लम की जुम्बिशें कहती हैं ,
शायर तू मेरे दिल की धड़कनो में रवां रवां सा है ।
ग़म की तन्हाइयों में भी लमहों का पता नहीं चलता ,
तेरे ख्यालों के पलछिन मैं पलकों से चुनता रहता हूँ ।
तुम्हारे हर किस्से कारगर थे मगर ,
बस एक कारोबार ए शायरी में कोई ज़ौक़ ए हुनर न दिखा ।
राह ए उल्फत में मर गया होगा ,
मुफ़लिश ए दौर में भी मेरा शायर हौसले से इतना कमज़ोर न था ।
इजाज़त मिलती नहीं अपने कुनबे से कभी बाहर निकलने की ,
मगर दिल की हसरतें भी बंदिशें सारी तोड़ देती हैं ।
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