शौचालय एक दर्द कथा a short story ,
दोस्तों ये एक सत्य घटना पर आधारित कहानी है , इसका पूर्व में एक कहानी शेयर की गयी थी जिसका नाम था,
सरकार की नल जल योजना पर एक विधवा की कथा व्यथा , चलिए अब उसी कहानी को आगे लेकर जा रहे हैं , पूर्व में
हमने पढ़ा था की एक विधवा का नलजल योजना के तहत लगने वाला हैंडपंप कैसे सरकारी घोटालों के चलते नहीं लग
पाया था , चूंकि विधवा का ससुराल में कोई सहारा नहीं था इसीलिए उसके भाइयों ने उसे ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा
देकर उसेक रहने के लिए मायके में ही रहने की व्यवस्था करवा दी थी , फिर सरकार की समग्र स्वच्छता अभियान के
तहत घर घर शौचालय बनवाने की योजना आई , जिसमे उस विधवा के भाइयों ने गाँव के सरपंच और सेक्रेटरी से जी
हुज़ूरी करके एक शौचालय बनवाने के लिए अर्ज़ी पुर्जी लगवाई अर्ज़ी तो मंज़ूर हो गयी मगर शर्त ये थी की पहले आप
शौचालय बनवाइए फिर सरकार १२००० रुपये खाते में ट्रांसफर करेगी ,
अब बात ये थी की सरकार जिस तरह का शौचालय बनाने के लिए पैसा देती है उस तरह के शौचालय की मुनियाद ज़्यादा
से ज़्यादा ४ साल तक की होती है फिर वो शौचालय कौड़ी काम का नहीं रह जाता है ,इसी लिए विधवा के भाइयों ने बैंक
की जमा पूँजी से एक अच्छा सा शौचालय बनवाया , जिसमे सीमेंट ३०० रुपये , लेबर ३०० से ३५० रुपये और मिस्त्री ६००
से ६५० रुपये और गिट्टी बालू छड़ मिलकर कुल लागत २५००० से ३००० हज़ार के बीच आई , इसके बाद सेक्रेटरी को जब
शौचालय दिखाया गया की अब सरकारी पैसा दिलवाया जाए तो सेक्रेटरी ने बोला पहले वाश बेसिन भी लगवाइये तब पैसा
अकाउंट में आएगा , विधवा का भाई मरता क्या न करता वाश बेसिन भी लगवाया आखिर कार ६ महीने बाद दो किश्तों
में १२००० रुपये विधवा के खाते में आ गये ,
विधवा के चेहरे में हल्की सी मुस्कान आई की चलो शौचालय अब घर में ही बन गया , शौच के लिए बाहर नहीं जाना
पड़ेगा , अब हुआ यूँ की घर से २०० मीटर की दूसरी पर जो हैंडपंप था फरबरी आते ही धूल उगलना सुरु कर दिया , घर के
रोज़ मर्रा के निर्वहन के लिए भी पानी मिलना मुश्किल हो गया किसी तरह आजू बाजू के मोहल्ले वालों जिनके पास बोर
वेल है उनसे पानी खरीदना पड़ता था , कहने को तो गाँव में एक अच्छी खासी पानी की टंकी है मगर घर घर पानी की
सप्लाई नहीं है , कुछ जगह तो इसलिए भी नहीं है कि रास्तों के बीच में लोगों की प्राइवेट ज़मीन है जहां से वो पानी का
पाइप आगे जाने ही नहीं देते , और कुछ जगह इसलिए भी नहीं है की क्यूंकि वहां नेताओं के लिए पर्याप्त वोटर्स ही नहीं
है , वैसे भी नेताओं द्वारा गाँव का भ्रमण सिर्फ चुनाव के समय में किया जाता है ,
ख़ैर विधवा का शौचालय बना मगर पानी के बिना शौचालय का उपयोग आज भी नहीं हो पा रहा है , यह सिर्फ उस विधवा
के शौचालय का हाल नहीं है , ऐसे बहुत से शौचालय आज भी हिन्दुस्तान में ऐसे हैं जो महज़ दिखावे के लिए बनकर खड़े
हैं , उनमे जानवर और पछी बस रात का बसेरा डालते हैं ।
pix taken by google ,