सहीदों के चिताओं की लकड़ियां बेंच खाने से गुरेज़ नहीं करते funny political poems,
सहीदों के चिताओं की लकड़ियां बेंच खाने से गुरेज़ नहीं करते ,
ये तहरीर ए आदमखोरों की रियासत है यहां भ्रष्टाचारों का विरोध नहीं करते ।
वो कहते है हमने किया नहीं कभी कारतूस के खोकों का हिसाब ,
जैसे वो हमारा हर एक हमला दिल में उतारे रहते हैं ।
नैनो में ख़्वाब खार बनके चुभते हैं ,
आज़ादी की दुल्हन सेज़ पर बिरहन बनके बैठी है ।
सर पर बाँध के पट्टी तूने क्या नमूनों सी फोटो खिंचा रखी है ,
क्या तेरे क़ौम ओ मुल्क़ में भी मज़हबी सरहद्दी है ।
कहीं का होके निकले थे कहीं के हो निकले ,
ये हुश्न वालों के शहर में बड़े खूबसूरत क़ातिल निकले ।
बस ज़हर उगलते हो या आस्तीनों में और सांप पाल रखे हो ,
इश्क़ के मारो के लिए गोया ज़बान में और क्या क्या ईनाम सजा के रखे हो ।
दोस्तों के बीच बेतक़ल्लुफी कैसी ,
नज़र उठा के बड़े शौक़ से जाम ए ज़ौक़ फ़रमाइये ।
पुराने दोस्तों की महफ़िल में तुम्हारे किस्से रोज़ चलते हैं ,
कही से आ रही होगी कहीं का फैसला करके ।
हाल ए दिल बयानी में कुछ लफ्ज़ हैं शामिल ,
लज़ीज़ियत ए उर्दू से भी इश्क़ का ज़ायका नया हो ।
तुझसे इक़रार ए मोहब्बत भी नहीं होती ,
गोया हमसे मोहब्बत का तग़ाफ़ुल किया नहीं जाता ।
जल रहे हैं हम भी जल रहे हो तुम भी ,
ये बदस्तूर ही तो नहीं मौसम ए मिजाज़ में तब्दीलियत सी है ।
मेरे अपने ही मेरी बर्बादियों में थे शामिल ,
ता उम्र मैं गैरों पर तोहमते लगाता रहा ।
आज फिर अगर मौसम ए मिजाज़ शायराना है ,
तूने ही फिर सर ए शाम कोई ग़ज़ल छेड़ रखी होगी ।
उचक के बादलों में रौनके रंग भर दो कोई ,
शबनमी फ़िज़ाओं का मिजाज़ आशिक़ाना है ।
उम्र के इस दौर में थम रही हैं साँसे ,
जबकि साँसों के इस दौर में मैं थमना नहीं चाहता ।
pix taken by google