सियासत है गर खून की प्यासी तो फिर ये प्यास बढ़ने दो romantic shayari ,

0
1927
सियासत है गर खून की प्यासी तो फिर ये प्यास बढ़ने दो romantic shayari ,
सियासत है गर खून की प्यासी तो फिर ये प्यास बढ़ने दो romantic shayari ,

सियासत है गर खून की प्यासी तो फिर ये प्यास बढ़ने दो romantic shayari ,

सियासत है गर खून की प्यासी तो फिर ये प्यास बढ़ने दो ,

क़फ़स से रूह तक जल जाए रेज़ा रेज़ा इंक़लाब करने दो

 

सियासत की तंग गलियों में मत आना आबिद ,

यहाँ खुदाओं के भी नाम बदल जाते हैं ।

 

क़फ़स में घुट घुट के मरने से अच्छा है ,

भूखे नंगे ही खुली सड़कों में आके इंक़लाब दोहराएँ ।

dosti shayari 

मुज़्तरिब है इब्न ए इंसान अपनी बहसत से गोया ,

जानवरों जैसा पेट की आग से इन्सान इतना मज़बूर नहीं है

 

आग उठने के लिए चिंगारी हो ज़रूरी तो नहीं ,

पत्थर दिलों को भी दर्द का एहसास होना चाहिए ।

 

तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी में बुज़ुर्गों के लिए वक़्त नहीं मिलता ,

जब खुद की उम्र हो जाती है तब सबको बुज़ुर्गियत याद आती है ।

 

चार छह दस की पंक्तियों से पता नहीं चलता ,

इश्क़ हर्फ़ दर हर्फ़ सफहों में बयान नहीं होता

 

तीर न तुनीर न खंज़र न तलवार ,

तेरे इश्क़ में ज़ालिम न जाने कितने आशिक़ बेज़ार पड़े हैं ।

 

यूँ साँसों का मुज़्तरिब होना ,

शब् ए महताब कोई बिछड़ा यार याद आ गया होगा ।

 

रातें मुज़्तरिब होती थी अंदाज़ ए गुफ्तगू में सारी,

अब मस्लहत ए दौर में बस हाल चाल होता है ।

 

ज़िन्दगी की अदायगी से पहले मुज़्तरिब तो न था ,

साँस थम गयी होगी थक के सो गया होगा

 

कमीज़ की मुड़ी आस्तीने इतनी मैली थी ,

उठी कॉलर से पता चलता है रुतबा अब तो ।

 

मुर्दा था तो अपने क़फ़स में सोया रहता ,

क्यों जँगलों से झाँक झाँक के ज़िंदा होने का एहसास किया करता है

 

ये मेरे दाग रहने दे तेरे सीने में ,

या मेरे क़फ़स की ही मुझको सुपुर्दगी कर दे ।

 

क़फ़न गिरे या बदन से कोई लुटता लिबास ,

ज़ौक़ ए शहर में है लुटती गलियों के तमाशा देखें

 

तू ग़र थक गया है सोजा,

मैं तेरे तकिये तले ख्वाब बनके न रह सो पाउँगा ।

sad shayari 

दिल इश्क़ ए मुलाज़िमत के लिए मज़बूर सही ,

मगर बग़ावत में बंदिशें इसे मंज़ूर नहीं

 

जिन्हें लगता है की ये मर जाएँ ,

उनकी बददुआएँ भी हम पर दुआ का काम करती हैं

pix taken by google