सियासियों ने रईसों की ऐय्याशियों के पुख्ता बंदोबस्त कर दिए poetry on politics in hindi

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सियासियों ने रईसों की ऐय्याशियों के पुख्ता बंदोबस्त कर दिए poetry on politics in hindi
सियासियों ने रईसों की ऐय्याशियों के पुख्ता बंदोबस्त कर दिए poetry on politics in hindi

सियासियों ने रईसों की ऐय्याशियों के पुख्ता बंदोबस्त कर दिए poetry on politics in hindi

सियासियों ने रईसों की ऐय्याशियों के पुख्ता बंदोबस्त कर दिए ,

फिर लरज़ते कुछ सिसकते बचपने क्यों रह गए ।

 

फ़क़त दो वक़्त की रोटी में दबा है बचपन ,

जिनकी सिसकियों में महले दो महले खड़े होते गए ।

 

ऊँचे महलों से सिसकियाँ सुनायी नहीं देती ,

हुकुमरानों की दावतों में मज़लूमों का खून ए जाम होता है ।

 

मासूम हाँथों में तक़दीर की लकीरें नहीं होती ,

आँखों में ख्वाब नहीं चिमनियों के जाले सज़ते हैं ।

 

बचपन की वो यादें वो आँगन का पालना ,

वो माँ की आँखों के मोती का पालने में झूलना ।

siyasat shayari 

वो पालने से झाँकते बच्चे का मुस्कुराना ,

वो उठना वो गिरना वो गिर गिर के सम्हल जाना ।

 

वो हँसना वो रोना वो रो रो के मान जाना ,

वो ज़िद ही ज़िद में चाँद तारों को मचल जाना

 

अब भी सोता हूँ मैं मगर वो बेफ़िक्री नहीं होती ,

अब भी रोता हूँ मैं सबसे छुपके छुपा के ।

 

अब भी जीता हूँ मैं मगर वो बचपन सी सादगी नहीं होती ,

कितना नटखट था वो बचपन का ज़माना

 

वो तितलियों में रंग भरना पंछियों संग उड़ जाना ,

ज़माने से थक हार के बचपन में खो जाता हूँ मैं ।

 

नींद से जागता हूँ जब ज़माने की भीड़ में खुद को पाता हूँ मैं ।

 

ज़िन्दगी खुद ग़मो का सौदा है फिर ,

दर्द भरी रग में जश्न ए महफ़िल दौड़ाऊँ कैसे ।

 

गज़ब ख़्याली है उसके पहलू में ,

जब थका धूप से सहारा माँ के आँचल में पाया

 

मोहब्बत के मानिंद कोई ख़ूबरू ए हवादिस न हुयी ,

न दर्द उठा न सोखी ए तद्फीन का पता ही चला ।

 

तयसुदा है जब रूहों का आना जाना ,

फिर क़फ़स के इर्द गिर्द दर्द सा रहता है क्या ।

alfaaz shayari 

कभी तो खुद लब पे ग़ज़ल बनके सँवर जाती है ,

तो कभी इज़हार ए मोहब्बत ज़बान पे आके लौट जाती है

pix taken by google