अदावतें नज़रों की होती तो सीधा दिल पर लेते romantic shayari ,
अदावतें नज़रों की होती तो सीधा दिल पर लेते ,
काली ज़ुल्फ़ों के घेरे से खुद को बचाऊं कैसे ।
किसी को तन्हाई मिली किसी को महफ़िल ए फ़िराक ,
इश्क़ ए दाग़ दामन पर लगा आया हूँ काला ही सही ।
दर्द दिल में था वज़ह ज़माने में तलाश करते रहे ,
दिल का सफ़ेहा अभी भी कोरा था ,
और लोग इज़हार ए उल्फत पर ऐतबार करते रहे ।
शब् ए महताब गुलों ने सुफेद चादर सी ओढ़ रखी है ,
गुफ्तगू के चमन में खलल का चलन निभाऊं कैसे ।
सफेदपोश सियासियों के काले कारनामे ,
दिन के उजालों में अस्मत ए वतन भी बेच देते हैं ।
नक़ाब काला हो या सफ़ेद ,
बन्दे की नीयत साफ़ होनी चाहिए ।
अब मौत ही उढ़ाये तो कफ़न ओढूँगा ,
तेरा इश्क़ ए लहू इस क़दर रगों में ताज़ा है ।
सुर्ख सफ़क उजालों की दरकार कहाँ ,
तेरे ख़्वाबों के घुप अंधेरों में थोड़ा जीता हूँ थोड़ा मर लेता हूँ ।
तुम निर्मल तुम निश्छल तुम जल सी शीतल ,
तुम करुणा तुम दया मई हरती जग के संताप सभी ।
मर जाती है मर्यादा में खुशियों का कोई मोह नहीं ,
देहलीज़ परे भी दुनिया है क्या विधवा के जीवन का कोई मोल नहीं ।
तुम त्याग और बलिदान की परिभाषा हो ,
नारी तुम अनछुई अनसुलझी जिज्ञाषा हो ।
फ़ितरतन इंसानियत से बढ़कर जहां में कुछ नहीं ,
गोया क़िरदार ए आदम क्यों वेह्शत तलाश करता है ।
नेतृत्व अपना हो अधिपत्य अपना हो ,
लुत्फ़ आता है नागराधिपति को भी जब रियाया में सामंजस्य बैठा हो ।
हर बात दूसरों के मुँहज़बानी दिल को अच्छी लगे ज़रूरी तो नहीं ,
कुछ अंदाज़ ए गुफ़्तगू में भी हाल ए बयानी होनी चाहिए।
रात की कालिख भी तिलिस्माती है ,
घुप अंधेरों के बर्क़ में जाने कितने राज़ ए गुल खिलाती है ।
ज़माने से चुरा लाया था आँखों आँखों में तुझको ,
जाने किस बर्क़ में छुपायेगा दिल ए नादान तुझको ।
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