अदावत में आमादा है मोहब्बत उसकी love shayari,
अदावत में आमादा है मोहब्बत उसकी ,
सर इल्ज़ाम नहीं तिज़ारत ओ बेवफाई का ।
मुरझा न जाए फ़स्ल ए ग़ुल खिज़ा के मौसम में ,
हमने अश्क़ों से सीँचा है दिल के ज़ख्मों को बाग़ ए बहार में ।
दीदा ए हुश्न की क़तार में उम्रें गुज़ार कर ,
दिलों में बेचैनी ए इश्क़ है आशिक़ का जनाज़ा ज़रा जल्दी उठाइये ।
शायर की शायरी को अश्क़ों के दो जाम हो जाएँ ,
फिर हाल ए दिल बयानी में चाहे सुबह ओ शाम हो जाए ।
जत्थे का का जत्था उठता रहा मलबे का ,
रात की तह में दबे अरमानो की कैसे फ़िक्र किये बगैर ।
रहे न रहे नाम ओ निशाँ जहां में ,
लबों पर दास्तान ए इश्क़ कोई छोड़ जाऊँगा ।
बेचैन है रूहें शिकायत ए दौर ज़ारी है ,
किसी के हक़ में बस ख़याल ए यार किसी को गज़ब की इश्क़ ए खुमारी है ।
ज़िंदा लाशों को हिज़ाबों में रखने की रवायत है यहाँ ,
न होती है लब पे शिकायत न चाक जिस्मों के पैबंद नज़र आते हैं ।
जाम ए मैकशी के बाद ही अक्सर ,
शिकायत ए पयाम दोस्तों की बातों में नज़र आते हैं ।
हिज्र ए मौसम का ज़हन पर हुआ इस कदर से असर ,
खिज़ा के मौसम में अंजुमन ग़ुल ए गुलज़ार नज़र आते हैं ।
आगाज़ ए इश्क़ इन्क़िलाब जैसा है ,
अंजाम ए इश्क़ क्या एलान ए जंग से कम होगा ।
अंदाज़ ए इश्क़ से वाक़िफ़ न था ज़माना सारा ,
अब मोहब्बत के साथ दिल की अदावतें भी तूल पकड़ेगीं ।
तर्क़ ओ ताल्लुक़ न निभा पाए मोहब्बतों वाले ,
अब अदावतें क्या ख़ाक निभा पाएंगे बेवज़ह वाले ।
आरज़ू ए मोहब्बत में जब कभी रूहें भटक जाती हैं ,
बेचैन फिरती है ताउम्र सुकून किसी ठौर नहीं पाती हैं ।
सब पे जवानी आयी आकर चली भी गयी ,
गोया नसीब वालों की रगों में ये मोहब्बत ए रवानी का जज़्बात होता है ।
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