love shayari अरमान जितने थे बेलिबास हुए ,
अरमान जितने थे बेलिबास हुए ,
हटा के रुख़ से ज़ुल्फ़ें जो वो बेनक़ाब हुए ।
रुख़ से उनके नक़ाब हट जाए तो ग़ज़ल होती है ,
वो शाम ए बज़्म में दबे पाँव उतर आएं तो ग़ज़ल होती है ।
कभी लब पर तबस्सुम सजाकर कभी आँखों के आँसू मिटाकर ,
न निकलो खुली धूप में बेपर्दा तुम ,
तुम में कितने अरमानो को किसी ने पाला है ।
इश्क़ वालों को हुश्न की तलाश बाकी है ,
नक़ाब ए हुश्न को तह ए दिल इश्क़ की प्यास बाक़ी है ।
कमी नहीं थी मरीजों के दवाख़ाने में ,
शाम ए बज़्म सजती गयी और फ़नकार बनते गए ।
इश्क़ के मरीजों का हाल हमसे न पूछो ग़ालिब ,
कुछ तो है बेहोश जो बचे हैं बेमौत मरे हैं ।
ये इश्क़ बस लाइलाज़ हुआ जाता है ,
मरीज़ ए दाना की ख़बर अब हम उनसे बताएँ क्या ।
ग़र्मी में ख़ुराक़ घटती गयी ,
लोग समझे मरीज़ ए इश्क़ है इश्क़ में बीमार होता गया ।
ये इश्क़ तिलिस्म सा है ,
बुझा बुझा सा है मगर जला जला सा है ।
ज़र्रे ज़र्रे में तेरा चर्चा है ,
कूचे कूचे में तेरे मरीज़ ए दाना है ।
इश्क़ ए मुफ़लिश भी ग़र गुमराह हुआ ,
फिर यूँ न हो कोई क़ाफ़िर नमाज़ी हो जाए ।
मर गए लोग बेखुराकी से ,
सबने समझ सच्चा आशिक़ रहा होगा ।
मस्त झोकों को झाँकते चितवन ,
अबके सावन भी लगे बिरहा है ।
वक़्त भर देता ग़र ज़ख्म सारे ,
एक तेरे साथ गुज़ारा लम्हा न ताउम्र डसता।
कोई एक अकेला गुनहगार नहीं होता ,
मरीज़ ए दाना की बर्बादी में ज़माने भर की ज़िम्मेदारी है ।
क़यामत तो तब थी क़यामत वो अब है ,
कुछ और निखर आया मरीज़ ए दाना इश्क़ ए नज़र के बाद ।
तुम्हे तो गुफ़्तगू ए तलब ,
शाम ओ सेहर साल दर साल ,
लबों की प्यास रही बाकी रूबरू ए बहरहाल ।
ग़र्मी सर्दी में सफ़र करते नहीं ,
खुद ब खुद सजते हैं सुख़नवर जब शमा ए बज़्म रोशन होती हैं ।
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