अफ़वाह क्या उड़ी दरबार ए हुजूम में shayari ,
अफ़वाह क्या उड़ी दरबार ए हुजूम में ,
सोयी पडी रूहों की फ़ज़ीहत भी बढ़ गयी ।
किश्तों में ज़िन्दगी भी अब तो एलान ए जंग सी लगने लगी है मुझको ,
तेरे भी दर से गोया रुख्सत ए रुस्वाई भी नहीं मिली ।
जहां पढ़ने खेलने की उम्र में छोटू वेटर मैकेनिक बनते हैं ,
ऐसे अज़ीम ओ शान शख़्सियत से भरे कुनबे से हम क्यों अन्जान रहते हैं ।
हाँथ से टूट कर गुब्बारा छूटा तो कोई रात भर रोया ,
फूट कर रो भी ना पाया कोई बचपन जाने कैसे नींद भर सोया।
बचपन ही ग़ुमनामी के अंधेरों में गुज़रा हो ,
ऐसे बच्चों को फलक के आफ़ताब क्या रौशनी देंगे ।
ghost diary a short horror story,
खिज़ा के मौसम में खिलेंगे गुल बहार बाकी है ,
अभी है इत्तेदाये इश्क़ इंक़ेलाब बाकी है ।
रात भर होती है गुफ़्तगू ज़माने की ,
बस आज अभी अब का हाल ए पयाम नहीं होता ।
साहिलों पर बैठ के बस नज़ारों के लुत्फ़ नहीं होते ,
भागती दौड़ती लहरों पर लोग डूबते सफ़ीने के भी मज़े लेते हैं ।
रात गुज़र जाती है सुबह की सुबा किये बगैर ,
भागते लम्हों को किसी ठौर पनाह नहीं मिलती ।
क़ाफ़िलों में चलते नहीं , अलग थलग उछाल भरते हैं ,
जंगलों में वही बच्चे अक्सर शिकार बनते हैं ।
ज़माने में एक हमारी ही नहीं है सूरत ए फ़ानी ,
हर एक चेहरे में गज़ब की दस्तकारी है ।
न ज़मीन में चलता है न आसमान में उड़ता है ,
फ़िज़ा की खुशबुओं में बचपन घुला मिला सा रहा करता है ।
किताबों के बर्क़ के अंदर तो कभी गुल्लक के छुपे सिक्कों में ,
मैं हरदम अपना बचपन तलाश करता हूँ ।
ढूढ़ ही लेता है शहर भर के मलबे में दबा बचपन ,
जब कोई बच्चा कचरे के ढेरों में पन्नी बीनता है ।
माँ बाप का फ़क़्र से सीना चौड़ा हो जाता होगा ,
जब पढ़ने खेलने की उम्र में बेटा घर चलाता होगा ।
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