आईन ए मोहब्बत में ग़र लुत्फ़ नहीं है love shayari ,
आईन ए मोहब्बत में ग़र लुत्फ़ नहीं है ,
किसी की नज़रों की निगेहबानी में हो बस लुत्फ़ यही है ।
बाहिस्त ए आदम की हिमाक़त देखो ,
हुश्न ओ इश्क़ के दरिया को भी महशर बना दिया ।
जिन्हें ज़ौक़ ए लाव लस्कर हो सम्हाले अपने ,
हम इश्क़ ए लुत्फ़ी नज़रों से दिलों के बस क़ारोबार करेंगे ।
झील में दरिया में जो बूड़ा चढ़ा था ,
शहर ए आदम में एक शक़्स मेरा भी बहा था ।
धुल गए चेहरों के नाज़ ओ नक़्स सभी ,
आज बादल गरजा ही नहीं बरसा भी है ।
मुँहज़बानी में बयान होती नहीं उस रात की वहशत ,
सावन की झड़ी में मैं तेरे कूचे से गया था ।
लेने वालों ने लिए होंगे मज़े बरसाती बयार के ,
न पूछे उनसे हाल ए जिगर उनका जो घर बहा के बारिश में भीगे थे ।
लुत्फ़ गैरों की महफ़िल में आये तो आये उनको ,
मेरा दोज़ख भी वही मेरा बाहिस्त भी वही I
वाक़ई लुत्फ़ लेना है ज़िन्दगी का अगर ,
मोहब्बतों में ख़ुद को लुटाते रहो ।
लुत्फ़ आता है बिख़र जाने में ,
शब् ए गुल को शबनम से निख़र जाने दो ।
यूँ ही दूर दूर से दुआ सलाम रखते हो ,
इश्क़ ए लुत्फ़ की मेहरबानियों से डरते हो ।
सैर पर सज़ते हैं किस्से जिनके ,
ज़ौक़ ए सुख़नवर के वही लुत्फ़ी होंगे ।
तुम्हारी हर नज़र मुझको बेलिबास करती है ,
लुत्फ़ आता है मगर जब नज़रें सवाल जवाब करती हैं ।
ज़िरह खोल देता है सादगी से लड़कपन उनका ,
बात हमने जो भी अकेले में लुत्फ़ ए संजीदगी में कही ।
ज़िन्दगी भी एक लुत्फ़ की तरह कटती ,
गोया साथ तुम होते तो न ये मुफ़्लिशी होती ।
रात अब साथ साथ रोने लगी ,
आसमानों के साथ महशर करने को आमादा है ।
ज़ीस्त ए महशर हो उनके कूचे में ,
जिनके दर से बड़े बेआबरू हो के हम आये ।
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