आरज़ू ए दिल की चश्म ओ चराग ग़मज़दा 2line shayari,
आरज़ू ए दिल की चश्म ओ चराग ग़मज़दा ,
घर हो गया है ख़ाक फिर भी रोशनी नहीं ।
कभी ठहरों नज़रों के रूबरू आँखों से आँखों के दो जाम हो जाएँ ,
लब रहें खामोश , खामोशियों में दिलों के काम हो जाएँ ।
मेरे नज़रों की चमक देख ,
तेरी मोहब्बत मेरी सुर्ख आँखों से अश्क़ों के मोती बनकर टपकती है ।
सियासतों से गर रोशन हो तेरा मयखाना ,
लहू पैमाने में भर कर नज़र से भी पीना नहीं ।
गम इतना भी नहीं की घर बुझे बुझे से रहें ,
दर्द इतना है की दिल जैसे थोड़ा थोड़ा जला है ।
दिलों के बावस्ता दिलों को जोड़ने लाख दौर चले ,
एक मोहब्बत ही क़ामिल न रही जब तेरे मेरे दरमियान अदावतों के दौर चले ।
चश्म ए चरागों को बंद बस्ते में डालकर ,
गरूर ए यार कहता है मेरे सर्द लफ़्ज़ों को सुनो ।
दिल जला कर ही गर रौशनी है फितरत तेरी ,
गोया सर्द बारिश में हम खुद को जला जायेगे ।
शहर भर में उजाले हो जश्न मनाओ यारों ,
आज शब् ए महताब मेरा यार निकल आया है ।
चरागों में उजाले हो न हो ,
सर्द रातों में आशिक़ों के दिल बेशुमार जलते हैं ।
गल्ले भर के रख लिए रोशनी के जज़ीरे में ,
चश्म ए तर आँखों से पिएगें जाम गम ए बारिश के महीने में ।
वो नब्ज़ थाम के चलते गर रात देर तलक ,
रोशनी कम न होती दिल के ग़रीब खाने में ।
शहर भर की रोशनी का ज़िम्मा लिए ,
सारी रात दर बदर हथेली पर दिल जलाये फिरता हूँ ।
बोलो बात करो क्यूँ हो खामोश क्यों तुमको हया आई क्या,
चमन में चटकी कली कोई जो तुम सरमाई क्या ।
कभी कोई गीत कोई ग़ज़ल की ख्वाहिश रख कर ,
तुम दबे पाँव शाम ए बज़्म में गुनगुनाते चले आना ।
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