इतर फुलेल लगा कर सियासी शख्सियत छुपायेगा कब तलक funny political shayari ,
इतर फुलेल लगा कर सियासी शख्सियत छुपायेगा कब तलक ,
तेरी पोशीदा की निगेहबानी से मरे मुर्दों की बदबू सी आती है ।
तेरे मुखड़े पर एक जुमला उछालने को जी करता है ,
तेरी शख्सियत में दबे मुर्दे उखाड़ने को जी करता है ।
देखा जो आइना तो मुझमे तू ही तू मिला ,
जब रूबरू हुआ तो आइन ए शख़्सियत बदल गयी ।
दफ़न हैं कितने सूरमा इसमें ,
ये मिटटी ख़ाक ए बदन पर सब्ज़ बागों के गुल खिलाती है।
वक़्त की फ़ितरत है रुख बदलने की ,
इंसान चाहे जितनी शख्सियतें इज़ाद करे ।
तेरी हर शख़्सियत फशाना है ,
तेरी सूरत फरेब लगती है ।
क़ुदरत से इश्क़ का अर्क़ भरता हूँ ,
तब कहीं जाके लफ़्ज़ों को क़लम बद्ध करता हूँ ।
होंगे वादियों के मंज़र हसीन लाख सही ,
क़ुदरत का हर करिश्मा तेरी तरह नायाब नहीं ।
बदलती सोहबतों का असर दिखने लगा फ़िज़ाओं में ,
घुली घुली सी नज़र रंग ओ बू का ज़िक़्र करने लगी ।
जिस दिल की ग़ैरतमंदी पर नाज़ था हमको ,
यूँ फिसला हाँथ से की गैरों की महफ़िल में जा गिरा ।
आँखों के मोती जब भी खार लगे ,
वादी ए गुल की शबनम को तुम अपनी पलकों से चूमते रहना ।
तथ्य सत्य होता गया ,
क़ुदरत से खिलवाड़ होता रहा मानवता खामियाज़ा भुगतती रही I
इन्सानियत जब भी तार तार होती है ,
क़ुदरत अपने आप मुँह दबा के रोती है ।
मरना सभी को है ज़िन्दगी में एक दिन ,
तब तक क्यों न ज़िंदा दिली से ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा सुन लें ।
हिमाक़तें बढ़ा देती हैं शैतानियाँ दिल की ,
कुछ नादानियाँ उनकी कुछ बेईमानियाँ क़ुदरत की ।
एक हैवान है इंसान के अंदर भी ,
जो इंसान का इंसान से क़त्ल ए आम मचा देता है ।
जानवर भी सोचते होंगे जंगल बेंच कर खा गए सारे ,
क्या शहरों में इंसान की सूरत में हैवान बसते हैं I
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