इश्क़ क़ुर्बानी मांगता है love shayari,
इश्क़ क़ुर्बानी मांगता है,
जिगर में आग , आँख में पानी मांगता है ।
तक़दीर की तहरीर में वो था ही नहीं ,
जिसकी जुस्तजू में जाया की हमने तमाम उम्र ।
एक इबादत एक बंदगी एक ख़ुदा भी ,
बनके रहता है रहबर साथ मेरे होके जुदा भी ।
ज़मीन के ज़र्रे भी आफ़ताब हुआ करते हैं ,
शागिर्दों के सर पर जब उस्तादों के हाँथ हुआ करते हैं ।
उठ रहे हैं धुआओं में सरारे शोले बनकर ,
आग की लपटों को मिल रही हैं हवाएं रहबर बनकर ।
अंधेरों में भी तन्हा होने नहीं देता ,
तेरा साया बनके रहबर मेरे साथ साथ चलता है ।
चाँद पर सरगम तारों पर ग़ज़ल होती है ,
फनकारों की फ़नकारी में उस्तादों की नज़र होती है ।
हर बात दूसरों की मुँहज़बानी ही दिल को अच्छी लगे ज़रूरी तो नहीं ,
कुछ अंदाज़ ए गुफ़्तगू में खुद की भी हाल ए बयानी होनी चाहिए ।
उस्तादों ने थाम रखी हैं शाम ए बज़्म हुज़ूर ,
गोया ख़ाक में मिल जाती शाम ए बज़्म ज़रूर ।
रात की कालिख़ भी तिलिस्माती है ,
घुप अंधेरों के बर्क़ में जाने कितने राज़ ए गुल खिलाती है ।
ज़माने से चुरा लाया था आँखों आँखों में तुझको ,
जाने किस बर्क़ में छुपायेगा दिल ए नादान तुझको ।
किसी की ख़ातिर कोई हँसते हँसते सूली चढ़ गया ,
ज़मीन को ख़बर कब हुयी इश्क़ की ख़ातिर आस्मां का बदल भी फट गया ।
ज़हन में ज़िद है जहां जला के राख़ तो कर दूँ ,
गोया ख़ाक ए ज़मीन में अपना नशेमन कहाँ छुपाऊंगा ।
परिंदों को ज़मीन से इन्साफ की उम्मीद नहीं ,
गोया आसमानो में आशियाना तलाश करते हैं ।
इश्क़ का नूर छलकता है निगाहों में तेरी ,
डूबी डूबी नज़रों में छुपा रखी है सूरत किसकी ।
शहर में कौन है पाक दामन बताओ यारों ,
हम भी उसके ही उसके ही कूचे में बसर कर लेंगे ।
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