इश्क़ की फ़ितरत कहें या फिर मुक़द्दर की अना love shayari,
इश्क़ की फ़ितरत कहें या फिर मुक़द्दर की अना ,
लाख होकर के जुदा मुझसे जुड़ा वो अब भी है ।
जश्न ए क़ुर्बत का मज़ा ले भी लो ,
ऐसी भी क्या अना वस्ल की रात है आगे ग़म ए फ़ुर्क़त का दौर दूर नहीं ।
ज़माने भर की रुस्वाइयाँ क्या कम थी ख़ुदकुशी के लिए ,
गोया तुमने भी अहमक़ समझ कर दिल्लगी कर ली ।
ज़ुल्म ओ ज़हालत की हदें पार कर ,
घर के मसलों को पेचीदा करके सियासत ने सरहद पर उतारा है ।
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निपट सकते थे मसले आपसी मिलबैठ करके भी ,
सभी कुनबों के नुमाइंदों को सियासी ग़र साथ ले आता ।
ज़र्रे ज़र्रे कुनबे कुनबे की आवाज़ एक जैसी हो अगर ,
जाग पड़ेंगे हक़ुमरान आवाज़ ऐसी चाहिए ।
अवाम अवाम नहीं कब तक ,
सियासतदान का ज़ुल्म चुप चाप सहे तब तक ।
अफ़शाना ए उल्फ़त के नुमाइंदे सियासतदानों सी बात करते हैं ,
छुपा के राज़ ए दिल झुकी पलकों से वार करते हैं ।
अफशाने बना डाले गुस्ताख़ ज़माने ने ,
नादान से इस दिल को चोरी का इल्ज़ाम लगा डाला ।
हर सै ख़फ़ा ख़फ़ा थी हर ग़म जुदा जुदा था,
तार्रुफ़ ए हक़ीक़त से ज़िन्दगी का अफ़शाना पता चला ।
होठों पर तबस्सुम न आँखों में गिला ,
बातों बातों में लबों से जलते सरारे पिला गया ।
जिनके हर किस्से में अफ़शाना हो ,
कौन जाने की अंदाज़ ए गुफ्तगू का क्या फशाना हो ।
कली कली चमन चमन में तेरा ही अफ़शाना है ,
हवा है संदली फ़िज़ा ए ख़ूबरू का हर शक़्स दीवाना है ।
मत पूछ मेरी ज़िन्दगी का अफ़शाना ए बयानी तू ,
टूटी हुयी किश्ती है डूबता हुआ किनारा है ।
अपने ही वतन में जैसे ख़ाक चुगती तितलियाँ ,
नाम की मादर ए ज़बान है हिंदी उर्दू सुर्ख शफ़क़ है अंग्रेजी बर्तानियाँ ।
अफ़शाना ए इश्क़ और हक़ीक़त ए रूदाद ,
घर बारिश में न जलाते तो क्या जुस्तजू ए अना करते ।
तेरे जलवों से ग़र क़लम ही गस खा जाए ,
फिर कोरे पन्नो पर निब न फिसले तो क्या हुश्न ए अना है ।
क़लम की नोक पर ग़र ज़बान रख कर ,
दास्तान ए बेवफाई सुनायी जाये , सात समंदर को स्याही कर असमान से तराई कराई जाए ।
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