उधार की ज़िन्दगी bewafa shayari ,

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उधार की ज़िन्दगी bewafa shayari ,
उधार की ज़िन्दगी bewafa shayari ,

उधार की ज़िन्दगी bewafa shayari ,

उधार की ज़िन्दगी,

हर रोज़ सुबह चाय की चुस्कियों से सिगरेट के कश तक खुद को बेरोज़गार खड़ा पाता हैं ,

हाँ वो दोस्तों की खाता है ।

गुलछर्रों में कमी नहीं होती कैश से ऐश तक दोस्त ही मुहैया कराते हैं ,

दोस्तों से उसके दिलों के नाते हैं ।

बेरोज़गारी का आलम इस कदर ज़हन में पसरा था ,

हर चाहने वाले उसे इन्तहा की हद तक बिसरा था ।

अपनों ने मुँह मोड़ लिया जब उसने उनका ज़िक्र छेड़ दिया ,

क्यों कर पास आता कोई जहान में हराम की नहीं खिलाता कोई ।

सिगरेट के धुएं सा ये आफत ए दौर भी टल जायेगा ,

आज भी सोचता है कोई भूला बिसरा कभी तो याद आएगा ।

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कभी तो होगा मन की मर्ज़ियों पर अपना भी कब्ज़ा,

कभी तो मिलेगा इस समंदर को भी आस्मां में खुद का हिस्सा ।

रिश्ते नाते सभी पुराने हैं,

सबके अपने अपने किस्से अपने अपने फ़साने हैं,

लहरों संग हर धार निकल जाती है,

तब कहीं जाकर नदिया समंदर में सुकून पाती है ।

क्रिकेट की पिच पर नो बॉल का फुदकते जाना ,

फिर किसी शॉट पिच बॉल की तरह बैट से ठोका जाना ।

बॉउंड्री पार उछली बॉल से जग जाता है ।

उधार की ज़िन्दगी लेकर भी कोई चैन से सो पाता है ।

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हर शाम का रोना है यही किस्सा है रूमानियत भी मातम का हिस्सा है ,

ख़ूबरू ए बहारा में सुकून मिलता नहीं ।

डूबते सूरज का आस्मां से जूनून दिखता नहीं ,

ढलते सूरज सा ये जीवन भी एक दिन ढल जाएगा ख़ाक मिटटी का बदन ख़ाक में मिल जाएगा ।

होगा फिर नया सवेरा नयी किरणों के साथ ,

साथ तेरे भी कुछ होंगे किसी और के बाद ।

नाम होगा उसका भी तेरी महफ़िल में जिससे रोशन थी कभी महफ़िल चश्म ए चराग के साथ ।

बस यही सोच कर रहा जाता है,

उधार की ज़िन्दगी में भी जाने कैसे वज़न आता है ।

pix taken by google