उम्र ए दराज़ और काले हर्फ़ों का तज़ुर्बा ये कहता है love shayari,
उम्र ए दराज़ और काले हर्फ़ों का तज़ुर्बा ये कहता है ,
शायर तमाम उम्र क़लम के ज़ोर पर सिपाहियों सा जंग लड़ता है ।
ये लज़्ज़त ए सुख़नवर तमाम उम्रों का सरमाया है ,
ये लज़ीज़ियत ए ग़ालिब दो चार लम्हों में नहीं आती ।
वक़्त ठहरा है इसी पल में हठयोगी बनकर ,
उम्र का क्या है चंद लम्हों में गुज़र जाएगी ।
ग़रूर ए इश्क़ में गुज़रा उम्र भर का क़ाफ़िला सारा ,
मुशाफ़िर सब रहे कौन किसका बनता सहारा ।
कितने अरमान झुलस जाते हैं सेहर होने तक ,
कौन जाने नरम जुल्फों तले कितनो का कारोबार हुआ करता है ।
रात गुज़ारी है काली ज़ुल्फ़ों तले ,
जाने कितने अरमानो को सेहर ए जन्नत नशीब होती है ।
खतायें दिल की सारे शहर में बावस्ता हैं ,
गोया काली ज़ुल्फ़ों से ज़्यादा जहां भर में गुनहगार नहीं ।
घनी ज़ुल्फ़ों की छाँव है हरसू ,
दिल मौज ए इश्क़ाने की बात करता है ।
हुश्न ओ इश्क़ और जमाल ए यार की गर बात चले ,
ज़ुल्फ़ ए दाना फिर क्यों न मौज ए बस्ती में कमाल करें ।
गुनाह ए इश्क़ के मुज़रिम की फेहरिस्त लम्बी है ,
फ़िज़ा में ज़ुल्फ़ ए घनेरी की चाल गहरी है ।
ज़ुल्फ़ ए दाना भी बना के निकले हैं मिजाज़ ए रुख से यार ,
अब तो अब्र ए मौसम से शहर भर में शामत ही होगी ।
कितने उलझे कितने बेज़ार पड़े हैं ,
कितने घनेरी ज़ुल्फें सुलझाने को तैयार खड़े हैं ।
सेहर ए आफ़्ताब से बुझ जाते हैं ,
जिन चरागों की बसर तेरी ज़ुल्फ़ों तले होती है ।
तेरे रुख़सार से हटें ज़ुल्फ़ें ,
तो शब् ए फ़िराक को एक नयी सेहर मिल जाए ।
तेरी ज़ुल्फ़ों तले तामीर ए मुक़द्दस हैं ,
शायर की शायरी शब् भर के दिये चाँद और तारे ।
मेरे शब् ओ सेहर का सरमाया है उसके दम से ,
इज़हार तो करता है सर इल्ज़ाम नहीं लेता ।
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