कफ़न पर खून के छीटे जिगर में चाक नहीं love shayari ,
कफ़न पर खून के छीटे जिगर में चाक नहीं ,
सुकून ए रूह नहीं तो फिर ये रवायत भी नहीं ।
ग़ुमनाम रास्तों में अब भी तेरी ख़ुश्बू है ,
मैं बेरुखी से गुज़रा हूँ गलियाँ बदल बदल ।
मेरे सफर का मैं हमसफ़र तन्हा ,
मेरी तन्हाइयों का हमशक्ल तन्हा ।
सर पर सेहरा तिरंगे का बदन पर मिटटी का उबटन ,
खुशबु वतन की साँस में भर कर दमकता है रणबांकुरों का यौवन ।
इन रंगीन लबों के जो इशारे हैं ,
रात ने सरगोशियों में सँवारे हैं ।
चाक जिगर के सिलना ही है गर दस्तूर ए ज़माना ,
गोया क्यों कर मोहब्बतों को ऐसे ज़ख्म देता है ज़माना ।
दरिया को उस झील की प्यास है फ़राज़ ,
जिसमे हो चांदनी का हमाम और दमकता माहताब निकले ।
हलक़ से जान जैसा कुछ अटका निकला ,
सारा का सारा शहर दुश्मन ए जान निकला ।
सांझ ढलते ही तारों सी टंग जाती है फलक पर मोहब्बत तेरी ,
गोया यूँ ही बस ताकती है या नज़रबंदी का भी इरादा है ।
रात भर पलकों की पतवार है चली ,
यूँ ही नहीं बहे दो नैनो की धार में कजरा गज़रा सुर्ख लबों की लाली कहीं कहीं ।
इन होठों पर मोहब्बत जैसा कुछ लिखने को मन करता है ,
आज की रात तेरे गुलबदन से शब् ए गुलज़ार करने का मन करता है ।
तुम तो ज़माने भर को रक़ीब बना लो ,
हमसे एक जमाल ए यार सम्हाला नहीं जाता ।
शहर ए दाना में रक़ीबों के ईमान बदल जाते हैं ,
मौसम ए ज़र्द में मेहबूब ए मिजाज़ टटोलो तो सही ।
हाक़िम थे जो ख़ुदा के मेहबूब हो गए ,
सज़दे में उनके जान वो रक़ीब हो गए ।
तुम दूर तलक साथ चलने का वादा ही कर देते ,
हम राह ए मंज़िल क्या रक़ीब ही बदल देते ।
फ़ितरत से कोई कभी ख़ुदा नहीं होता ,
हम तो बस मोहब्बत में उनको अपना रक़ीब कह गए ।
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