कब्रों में भी कहाँ सुकून पाती हैं love shayari,
कब्रों में भी कहाँ सुकून पाती हैं ,
कारोबारी दौर की रूहें रुपैया पैसों में ही उलझी नज़र आती हैं ।
पेट की जलती भट्ठियों में दो चार टुकड़े डाल दो,
बुझ गया तंदूर क्या जलते अंगारे डाल दो ।
शहर भर का उजाला क्या कम था ,
जो ज़फर रोशनी की खातिर आशियाना मेरा फूँक गए ।
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हर रोज़ तेरे कूचे में जा बैठता है ज़फर ,
उजाला मेरे चरागों का घर में टिकता नहीं ।
होनेवाले होंगे क़तरे कतरे को मोहताज़ ,
मैं हथेली में मोहब्बत का समन्दर लिए फिरता हूँ ।
बोलता नहीं ख़ामोश रहकर भी रुपैया ,
खना खन ज़माने की नैमतों को तौल देता है ।
क़फ़न मैला है मेरे पिंजरे का ,
रोज़ धोता हूँ ज़फर फिर भी दाग जाता नहीं ।
चलने दो जश्न होने दो रौशनी शहर में ,
हम भी देखेगे क़फ़स कितना ज़हर उगलता है ।
रौशनी और पटाखों के शोर ओ गुल में कहीं ,
शहर के किसी कोने में आज फिर यतीम भूखा है ।
शहर भर की रौशनी कम है ,
सूखे पत्तों के झोपड़े में आँखें अब भी नम है ।
दो नैनो के टिमटिमाते दिए बुझते नहीं ,
फिर कोई आज दिवाली में दिल जलाया होगा ।
रौशनी दूर तक बह जाती है ,
उन आँखों का समंदर थामने से नहीं थमता ।
क़फ़स में जलते चरागों की रौशनी कैसी ,
अंजुमन में खिले फूलों का मुस्कुराना जैसा ।
चश्म ए चरागों में बुझा बुझा सा है ,
ज़माने के शाद ओ जश्न रास आते नहीं ।
नुदरत नहीं है सब्ज़ बाग़ की खुशबुओं में वो ,
कोई तो बुग्ज़ हो जो रज़्म ए वफ़ा करे ।
रात की रंगीनियों के जुगनुओं से चमकते मिजाज़ ,
सौंधी सौंधी मिटटी की खुशबुओं से गमकते चराग ।
धरा के छोर से उस ओर ख़बर से बेख़बर साहिल ,
सफ़र की कंदराओं में भरा सागर ही सागर हो ।
शिखर की चोटियों से पूछो ऊँचाइयों के सफ़र में ,
कितने पर्वत गिर गिर के सम्हाले होंगे ।
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