क़त्ल गाह बनाम सरकारी हस्पताल funny political shayari ,
क़त्ल गाह बनाम सरकारी हस्पताल ,
क़त्ल गाहों में जानवर कटते हैं ।
सरकारी हस्पतालों में इंसान मरते हैं ,
बिस्तर पर पड़ा कोई कोई चौगान नापे है ।
ये निर्मोही हस्पताल बड़ा कर्कश सा लागे है ,
न ढंग के डॉक्टर न हक़ीम कोई ।
जितने मिले हैं सबके सब क़ातिल लगे मोही ,
मुँह दबा के मारता है कोई ,
कोई इंजेक्ट करके मारता है ।
चूरण चटा के मारता है कोई ,
कोई चूने की गोली खिला के मारता है ।
बड़ा भौसा खाता है ,
मज़बूर ही सरकारी हस्पताल जाता है ।
गायनी वार्ड तक गायनकी के पहुचने से पहले ,
हो गया प्रसव डॉक्टरनी के पाँव धरने से पहले ।
जो बच गया जच्चा तो बच्चा मर गया ,
कभी कभी कुछ अवतार निकल जाते हैं ।
मरीज़ को इलाज़ से पहले ,
प्राइवेट नरसिंग होम में शिफ्ट कराते हैं ।
मर गया बेमौत जिसकी औक़ात न थी ,
लूट लिया मौज जिसकी ठाठ थी बड़ी ।
मुर्दे निकलते हैं हस्पतालों से जुलूसों की तरह ,
होता है हुज़ूम लाशों का जलसों की तरह ।
कौन कैसे मर गया किसी को ख़बर नहीं लगती ,
अंधों के राज में कानो को कौन सुनाये आप बीती ।
कदमो में नहीं ज़ोर बस ज़बान लरज़ती है ,
सड़सठ साल के वतन को पल्स पोलियो की खुराक लगती है ।
गिर गिर के सम्हलता है या सठिया गया है क्या ,
या घुटनो में इसके गठिया बात है या साटिका है क्या ।
एक हाँथ दे हिन्दू तो दूजे में मुसलमान चाहिए ,
जो अब भी न चले तो क्या हरिजन कल्याण चाहिए ।
पगडंडियाँ जोड़ती हैं शहरी रिहाइशों को ,
गाँव के खेतों को भी किशान चाहिए ।
आबादी बढ़ा के क्या घुड़शाल बनाना है ,
उम्दा नश्ल के धावकों की भरमार चाहिए ।
क्या सोचा होगा बापू जो संत था बड़ा ,
मिड डे मील वाला हिंदुस्तान आगे होगा खड़ा ।
कुनबे कुनबे में बिकेगी शराब ,
क्या स्कूल के बाहर भी बियर बार चाहिए ।
लुट जाता है जहाँ आदमी मज़हब के नाम पर ,
क्या ऊपर से नीचे वाला तक बेईमान है नहीं ।
बँट रहा है देश टुकड़ों में नफरत के नाम पर,
रोटी नहीं है पास भिखारी को कौन सा इंक़लाब चाहिए ।
जाने कैसे सीना ताने फिरते हैं सियासी ,
जब अवाम ए हिंदुस्तान की बहु बेटियां न घर में हो सुरछित ।
क्या फिर से कोई एक अवतार चाहिए ,
तीन बंदरों का पाठ क्या पढ़ाया सबके सब नकलची हो गए ।
मर गया ऐक्सीडैण्टियल रोड पर ,
पथिक रफू चक्कर होगये ।
तन पर वस्त्र नहीं फिर भी खूब उड़ता है ,
ये गाँधी का मुलाज़िम सबकी ख़िदमत में रोज़ मिलता है ।
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