किसी की क़िस्मत किसी का सहारा होता Alfaaz shayari,
किसी की क़िस्मत किसी का सहारा होता ,
ग़र महफ़िलें मिलती हर मंज़र हमारा होता ।
सब चरागों को महफ़िल ए रानाईयां नहीं मिलती ,
कुछ दिये ग़म ए तन्हाइयों में भी जला करते हैं ।
साथ साथ जलना सबकी तकदीरों में कहाँ होता है ,
कुछ बुझे बुझे से चराग़ चिलमन की ओट में ही जला करते हैं ।
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कहने को तो सारा ज़माना साथ होता है ,
और हम भीड़ में भी तन्हाई का मज़ा लेते हैं ।
रात शमा की रोशनी में गुज़री ,
दिन को उजाले की तन्हाईयों ने घेरा है ।
कहने को तो सारा ज़माना अपना था ,
उन्ही अपनों के बीच दिल तन्हा जला करता है रात भर ।
तन्हाइयों में जब हवाएँ सरगोशियों से तेरा नाम लेती हैं,
आज भी अंजुमन का आलम महक सा जाता है ।
महफ़िलों में बस ज़िक़्र हो ज़रूरी तो नहीं ,
अक्सर तन्हाईयों में भी फ़िक़्र तेरी होती है ।
साथ बढ़ते क़दम तो अच्छा था ,
वक़्त की तहरीर पर मंज़िल ए मक़सूद हमनवां होते ।
बदगुमानी में भी बहके इतनी कमज़ोर नहीं ,
किसी शायर को झुका दे नज़र ए आतिश में इतना ज़ोर नहीं ।
तकदीरों के दम पर वक़्त की तहरीरें बदल गयीं ,
जहां धूल उड़ती थी फ़िज़ाओं में अब रंग ओ बू से सब्ज़ बाग़ सजते हैं ।
तदबीर अगर दो क़दम आगे की सोचे ,
तक़दीर खुद बा खुद चार क़दम आगे बढ़ाती है ।
हर बात पर तक़दीर से गिला शिकवा करना ,
तब फिर जायज़ है तक़दीर को भी कमज़ोरों से दूरियाँ बनाए रखना ।
मेरी तक़दीर में तू नहीं निकली ,
तेरी तक़दीर से मेरी तक़दीर बद्तर निकली ।
गरूरियत सर पर सवार हो जिसके ,
कोई कैसे कहे तक़दीर दुबारा मौका नहीं देती ।
वक़्त की परख हवाओं के मिजाज़ सी होती है ,
जो सम्हला है अडिग वो जो बहका वो लहरों के साथ बहता चला गया ।
कुछ तक़दीर ने बिगाड़ा कुछ वक़्त बेवफ़ा होता गया ,
न हमें मोहलत मिली सुधरने की न कIरवाँ ठहरा ।
हाँथ की लकीरों से गर खोया चाँद मिल जाता ,
गोया लोग पीर फ़क़ीरों की मज़ारों में न सज़दे करते ।
pix taken by google
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