ख़लिश है दिल में ये फासला क्यों है josh shayari,
ख़लिश है दिल में ये फासला क्यों है ,
है मंज़र धुआँ सा हर दिल रुआँसा क्यों है ।
जूनून हो गर फासला मिटाने का अपाहिज़ भी मीलों पैदल दौड़ लेते हैं ,
दूरियाँ हों ग़र दिलों में घर के लोगों के तार कभी जुड़ते नहीं ।
फासला सरहदों का है दिलों के तार जुड़ने चाहिए ,
इक खरास सी है जो ज़बान पर बस आवाज़ खुलनी चाहिए ।
दुआओं में गर हाँथ उठे शहर ए मुंसिफ़ का ,
गिरिजाघरों से मंदिर मस्ज़िद तक क़ौमी एकता की आवाज़ें एक साथ उठनी चाहिए ।
लेकर चैन ओ अमन का नुस्ख़ा ,
दिल की कटी पतंग सरहदों के पार निकल जाती है ।
सदायें दिल की दुआ बनकर निकलती हैं ,
खिलते चमन में गुल और फ़िज़ाएं मुस्कुराती हैं ।
ज़बान पर चाँद तारों की बातें ,
लबों पर खिलखिलाते तबस्सुम कहीं ये राज़ ए गुल आगाज़ ए इश्क़ का सर इलज़ाम न लेले ।
कोई बात है जो होठों पर तबस्सुम बनकर के आई है ,
या कोई सिला है जिसकी राज़ ए दिल में गहराई है ।
दिल में गिला हो तो खुल के इज़हार भी करो ,
सुर्ख लब पर तबस्सुम की सुबा भी बर्दास्त नहीं है ।
बड़ी नाज़ुक सी डोर थी सम्हाले न सम्हली ,
वक़्त के हाँथ से टूटी ज़िन्दगी तो बहुत दूर निकल जाती है ।
मेरी हर नब्ज़ पढ़ लेता है चेहरे से हक़ीम ए दाना हो जैसे ,
मैं खुद में रह कर के भी ख़ुद से कभी मिला नहीं पाता ।
जो ग़र हो फासला ए दरमियान रंग ओ बू के ,
लपक के तोड़ लो गुंचे अमन के साख़ चाहे जितनी ऊँची हो ।
गर सुन सकता है तो मेरे क़दमों के पदचाप सुन ,
रात के सन्नाटों में आहटें बड़ा दूर तक जाती हैं ।
सुकून देता है तुझको मुझसे दूर रहना ही,
तू फ़ौरन दरमियाँ ए दिल अभी दीवार चुनवI दे ।
हम मोहब्बत मोहब्बत चिल्लाते रहे,
वो अवाम अवाम करता रहा ।
इस दरमियानी रात का फासला होता है अक्सर ,
गोया अंजुमन में राज़ ए गुल हर रोज़ खिलते नहीं ।
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