ख़्यालों की चहल कदमी में निकल आया था love shayari,
ख़्यालों की चहल कदमी में निकल आया था गलियारे तक तेरे ,
अब तेरी ज़ुल्फ़ों के जज़ीरे में मेरी सेहर को पनाह मिलेगी।
दिलों के कारोबार सम्हाले नहीं जाते ,
शहर ए आदम में ज़बरदस्ती की बेरोज़गारी है ।
न दर्द की सुबा हुयी न आह का फुआं उठा ,
शहर ए मुंसिफ की इत्तेला बग़ैर मोहब्बतों का क़ाफ़िला गुज़रा ।
कर्ज़दारों के क़र्ज़ लौटाते नहीं बनते ,
क्या बहुत आसान है उम्र भर की कमाई जीते जी ज़मीर खो देना ।
तर्ज़ बदल जाते हैं सुहाने वाले ,
जब ज़िन्दगी सर ए शाम राग बिरहा छेड़ देती है ।
कोई ख़ुदा ज़मीन पर उतरता नहीं ,
ख़िदमत करता है ज़मीन की किसान तब कहीं जाके सबका पेट भरता होता है ।
घर की महफ़ूज़ियत तक दीवार जायज़ थी ,
हमें इल्म न था फ़राज़ , तुम मुल्क़ के भीतर भी एक मुल्क़ बना डालोगे ।
तह ए दिल की मरम्मत को कुनमे में छोड़कर ,
वो शहर भर में दिल ए मग़रूर के क़ुनबे बना रहे हैं ।
कोई ख़ुदा ज़मीनी हो तो ज़िरह को समझे ,
जलते आसमानों से कौन रोये मुआं कौन फ़रियाद करे ।
बूंदा बांदी मेरे शहर में हुयी ,
दिल का आलम फ़िर भी सूखा है ।
भर भर के पिला शाकी तू दर्द के प्याले ,
है गर ख़ुदा की मर्ज़ी यही तो ज़माने का दस्तूर यही है ।
माना तब्दीलियत ज़रूरी थी ज़िन्दगी के लिए ,
तेरा यूँ मुड़ के बदल जाना दिल को गवारा न हुआ ।
तू मेरी बेबसी का इल्ज़ाम अपने सर न ले ,
मैं मुंसिफ हूँ गर तेरा तो मैं ही इन्साफ़ करुगा ।
निःशब्द होठों की वाकपटुता तो देखो ,
बिन कहे कुछ भी हज़ार अलफ़ाज़ कहते हैं ।
इन सुरमयी आँखों की जुगलबंदी ,
अब्रू और सुरमे में जाने कितने खंज़र छुपाये हैं ।
ख़बर मिलती है दिल रुआँसा है,
कोई तो है शहर में मेरे जो तेरे जैसा है ।
ज़माने भर की नफ़रतें लाख सही ,
तेरा एक नज़र ए करम बस रूहों को सुकून देता है ।
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