ख़्याल ए ग़ालिब ही बचा लेता है शायर ओ सुखन को romantic shayari ,
ख़्याल ए ग़ालिब ही बचा लेता है शायर ओ सुखन को ,
गम ए उल्फत में ख़ुदकुशी के वास्ते हमने भी कई बार उठाये थे कदम ।
तहरीरें बदल गयीं मोहब्बतों की तेरे जाने के बाद ,
गोया अब थाम के निकले हो दामन ए यार तो दूर तलक साथ चलो ।
दबे पाँव गुज़र न सके हमारे कूचे से ,
और कहते हैं हर बार, मोहब्बत कहाँ पर मिलती है ।
चलो इस रात की सुलह कर दें ,
तुम अपने घर को निकलो हम तुम्हे रोकने की ज़िद ख़त्म कर दें ।
तुझे अपनी अना की ज़िद थी वरना ,
हम भी अपनी इंकिसारी न तरदीद करते ।
दिन के उजालों में स्याही सूख जाती है ज़फर ,
शबनमी रातों में माझी ए इश्क़ सुनाने का दस्तूर नहीं ।
धमनियों से सिराओं तक कब्ज़ा है ,
आदम ए दिल पर इश्क़ कोलेस्ट्रॉल का जैसे थक्का है ।
धड़कती है कब्र पर चादर ग़ालिब ,
कोई आदम ए रूह दबी मिटटी के नीचे तड़पता है ।
कभी आग कभी जलजला सा है ग़ालिब ,
मासूम से मासूम मोहब्बत भी एक बला की है क़ातिल ।
यूँ तो खूबसूरती ज़माने में बहुत है ज़फर ,
हमे एक तेरी सूरत के सिवा कोई और सूरत नज़र आती ही नहीं ।
किसी को इश्क़ के नग़मे पसंद किसी को इश्क़ ए जूनून ,
गोया सुकून ए ज़ीस्त की खातिर भी कोई कहता पहले मैं मरूं ।
कुछ बच गए हैं वो जो आदम से दिखते हैं ,
गोया मुफ़लिश ए शहर बिकने से ऐसे क़िरदार कहाँ बचते हैं ।
दिल वही पूरानी सी गलियों में घूम आया है ,
तब से इश्क़ ए फरसूदगी मचा के रखा है ।
जिनके जनाज़े का वज़न चंद सिक्कों से कम था ,
उसने काँधे से तौल डाले इंसान सारे ।
हर बार निकल जाता है आदम ए सूरत बदल बदल ,
सीरत से दिल फ़रेबियों का कोई जवाब नहीं है ।
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