ख़्याल गुम हैं महफ़िल ए रानाई में mohabbat shayari ,
ख़्याल गुम हैं महफ़िल ए रानाई में ,
तन्हाइयों में जश्न ए ग़ालिब का कहकशाँ होगा ।
मत रख ये बेतकल्लुफ सी नज़र ,
की ज़ाम आने से पहले लबों की प्यास बुझ जाए ।
मेहबूब को ख़ुदा करके वो नग़मे तलास लेते हैं ,
हम उन्ही नगमों में ख़ुदा की बंदगी तरास लेते हैं ।
न तीर न तरकस बस नज़रों में अज़ाब ,
जाने कैसे लोग मोहब्बतों को ख़ुदा कहते हैं ।
सारे शेर ओ शायरी आपकी नज़र ,
हम तो जुमला ए इश्क़ में ही बसर कर लेंगे ।
खुद से ऊपर की बात करता हूँ,
हर एक बन्दे में ख़ुदा तलास करता हूँ ।
यूँ तो दुनिया की हर सै नश्वर है ,
बस एक ख़ुदा ही है जो सबका दानिश्वर है ।
कभी रात के सन्नाटे में आकर के मिलो ,
गेसू फैलाए मेरे घर में तन्हाई पसरी रहती है ।
यूँ ही लगता है हर बन्दे में गर ख़ुदा होता ,
ख़ुश्बू ए गुल से रोशन चमन हर तरफ कहकशाँ होता ।
शहर ए नामचीनों में गुमनाम सी एक बस्ती है ,
कुछ ख़ार के दरख्तों को जहां परवरदिगार कहते हैं ।
जो थे शहर ए नामचीन वो गुमनाम हो गए ,
जो बच गए इश्क़ ए बला से वो राह ए फ़क़ीर हो गए ।
रखता नहीं हूँ दिल में आदम ए आहट की आरज़ू ,
उस राह निकल जाता हूँ जहाँ इंसान ही न हों ।
आरजूएं अब भी मचल जाती हैं तन्हाई में ,
इश्क़ के मज़हब का लाख वास्ता ए दीन ओ ईमान सही ।
मेरा दिल हिफाज़त में है जिसके ,
उस शौक़ ए निगेहबान को अमानत का ख्याल हो न हो ।
जहाँ में लोग निवाले का शिकार होते हैं ,
दाने दाने में सियासी सियार होते हैं ।
मेरी हर आरज़ू ए अमानत थी तेरी ,
ता उम्र सरगोशियों का में असर दिखता रहा ।
तू रख शर्म ओ हया को सम्हाल कर अपनी,
तेरी इस बेहयाई से मैं सर्मसार हुआ जाता हूँ ।
एक ताज़ा तरीन नज़्म है पेश ए नज़र हुज़ूर,
खुश्क मौसम में तर ओ ताज़ा हैं गुल नाजनीनों का है कसूर ।
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