खिज़ा के मौसम में बढ़ के बहारें दामन चूम लेती हैं romantic shayari,
खिज़ा के मौसम में बढ़ के बहारें दामन चूम लेती हैं ,
बोसा ए इश्क़ के बाद कुछ कलियाँ नाम पूछ लेती हैं ।
एक ताज़ा तरीन नज़्म है दिल में आपकी शिरकत के बाद ,
बेखुद है चश्म ए चोंट से न हरकतें न धड़कन न कोई जवाब ।
मोहब्बतों के कसीदे पढ़ने में उम्र ए ज़ाया करके ,
आओ तह ए दिल से जज़्बा ए इश्क़ के दो दो हाँथ कर लें ।
एक मोहब्बत का इल्म है जो खींच लाता है दिलों को आदम के पास ,
एक हसरत ए बहसत है जो इंसान को इंसान तक आने नहीं देती ।
रुक्क़ाह थमा गए रोज़मर्रा की ज़रूरीतो वाले .
गोया ये भी न सोचा दिल का रिश्ता है परचून की दूकान तो नहीं ।
सुना है जम्हूरियत ए ईमान में चरचनाएँ बहुत होती हैं ,
बस दास्तान ए इश्क़ को कोई ख़ुतबा नहीं मिलता ।
चलो दिल में छुपे दरियाओं को पी जाएँ ,
ये आंसू आँखों को खार बनके चुभते हैं ।
हर बात बताई जाये ज़रूरी तो नहीं ,
कुछ रिश्ते बस ऐतबार पर चलते हैं ।
वैचारिक वैमनश्यता के चलते ,
सौहार्दपूर्ण ढंग से सहिष्णुता के साथ अतिथियों को गिद्ध भोज में सम्मिलित किया जाए ।
कितना मांजेगा मुझे माँझे से ,
सद्धी तेज़ है मेरी तेरे मज़हबी इल्म के धागे से ।
तुमको तुम्हारे मज़हबी इल्म ने तबाह किया ,
हमने तो बस इश्क़ में बुत ए मुजस्सिम को ज़िन्दगी अदा करी ।
बड़ी ज़हमत के बाद आती है ज़बान पर रह रह के ,
वो दास्ताने लैला मजनू ये दौर ए वहशत का इल्म और ज्ञान ।
लाख इल्म सही आज के आदम ए दौर में ,
लेकिन वो तहज़ीब ओ तलफ़्फ़ुज़ वो अंदाज़ ए अदायगी नहीं दौर ए जहां में ।
दो निवाले की ललक में मिट रही हो बेटियाँ ,
कौन चौराहे में टंगवाये जहां आबाद है अपना ।
यहाँ बस मज़हबी इल्मी हैं सारे जमात में ,
सबसे ऊपर क़ुदरत ने सिर्फ एक इंसानियत ए इल्म बक्शा है सारे जहां में ।
धारा सारी गिना गया रिहाइयों वाली ,
एक भी दफ़ा बता देता बेमुरव्वत में फंसे दिल की इश्क़ ए गिरफ़्तारी वाली ।
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