ग़फ़लत हो गयी साहेब जो खता कर बैठे love shayari,
ग़फ़लत हो गयी साहेब जो खता कर बैठे ,
अंदाज़ ए गुफ़्तगू से तेरे मेरे इश्क़ का मुब्तला कर बैठे ।
दौलत ए इश्क़ की हक़ ए आशनाई है जिन हाँथों में ,
गोया तबाह ए इश्क़ की बर्बादी क्यों है उन हाँथों में ।
सिक्के जितने थे दौलत ए इश्क़ के चला लेते आप ,
दरमियान दिल के गिले शिकवे भुला देते आप ।
तकना रात भर आस्मां में चाँद तारों की जुगल बंदी ,
रज़ामंद आशिक़ों के दरमियान लाख ज़माने की हो नज़रबंदी ।
एक नज़र का मुन्तज़िर था वरना ,
गोया चाँद दरमियानी रात का किस्सा कभी मुँहज़बानी कहता ।
गर जलते किस्से भी शमा ए महफ़िल में ,
तेरे मेरे दरमियान हर रोज़ नए किरदार बनके न खड़े होते ।
हिमाक़तें बढ़ने लगी नज़रों की ,
कभी सज़दा ए इश्क़ में सर ज़माने भर के झुका करते थे ।
मोहब्बत ही ग़र थी इतनी पाकीज़ाह ,
तूने सज़दे किये क्यों ख़ुदाओं के तरहा तरहा लिबासों में ।
हमने मोहब्बत करनी क्या बंद कर दी ,
ज़माने भर में लोग दिलों को खुल्लम खुल्ला लेके घूमने निकल पड़े ।
आशिक़ी में मर गया लहू ख़त्म होने से पहले ,
लोग समझे दिल ए बीमार को इश्क़ हुआ ही नहीं ।
हमने भी सहतूत के पत्तों पर लिख दी थी ग़ज़ल ,
सुना है रेशम के कीड़ों की नज़र पत्तों तक पहुचती ही नहीं ।
कोई निस्बत न सही थोड़ा रुकता तो क़ाफ़िर ,
हमने दरख्वास्त ए मोहब्बत आबिद से लगाई तो है ।
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ठिकाना मेरा तेरे शहर भर में नहीं ,
गोया हम अपनी कारगुज़ारी से बस्तियां दिलों में तेरे कर लेगे ।
उफ़ ये आफ़ताबी मिजाज़ उस पर ज़ुल्फ़ ए रानाई ,
घटा से उतर रही हैं बदलियां आब ए ज़ार होकर के ।
इसे अज़ाब समझू या मोहब्बत ए रुसवाई ,
इस आब ए यारी में अच्छे अच्छे आबिद होके गए ।
लब पर न तिश्नगी है न दिल में कोई खलिश ,
अश्क़ों में बह गए वो असरार बिन कहे ।
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