ग़म ए गर्दिश में मुस्कुराहटों का एहतिराम करो bewafa shayari,
ग़म ए गर्दिश में मुस्कुराहटों का एहतिराम करो ,
सम्हालो शाद ए मुहकमा फ़िक़्र ए नाशाद में उम्रें ज़ाया न करो ।
नाज़ हमको भी था इश्क़ ए तबीयत पर उनकी ,
गोया फ़िराक़ ए यार देखी हसरत बदल गयी ।
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गर्द पत्तों की धोने से गुलशन गुलज़ार नहीं होते ,
लहू झोकना पड़ता है जड़ों में तब दरख़्त तैयार होते हैं ।
शाद ओ ग़म सा तेरा मुझे साथ मिला ,
मैं तन्हा महफिलों में चरागों सा बस जलता रहा ।
शाद ए घुंघरू की छम छम ,
मेघा संग नाचे मन मोरा शाद ए घुंघरू बनकर ।
मज़बूरियों में फ़िराक़ ए यार बदल जाते हैं ,
वैसे हर बन्दा ख़ुदा का नेक बन्दा है ।
शबनमी शाम धुली धुली सी है ,
फ़िराक़ ए यार पर चश्म ए गुल नज़र हम भी कर लेंगे ।
मुतरिब ए शान ए शान ए शामियाना ए ग़ज़ल ,
मिसरा ए चश्म नशीन जश्न और वो शाम ए फ़िराक़ ।
हर बार सेहरा बाँध कर निकला,
मुसलसल तक़दीर ही फ़िराक़ ए बेईमान निकली ।
बहक जाती है सारी रात तेरे आने से ,
तुम ख्यालों में दबे पाँव आया जाया करो ।
हर मौसम का सारा अमला है ,
जिधर देखो मोहब्बतों के ढेरों दुश्मन हैं खड़े ।
ग़ुस्ताख़ी माफ़ निग़ाह ए ज़ुम्बिश में भी अब आब नहीं ,
ताब सारा का सारा मोहब्बतों में डूब गया ।
साज़ ए दिल तार को छेड़ दिया ,
गोया शाम गुज़रेगी गुलों की बहार ए पहलू में ।
यूँ ही गुनगुनाना मेरी आदत है ,
फ़ितरत ए इश्क़ को आशिक़ी न समझ मैं इंसान हूँ कोई मसीहा तो नहीं ।
तुम किनारों को दरकिनार करो ,
मोहब्बत से अब हमारा भी सरोकार नहीं ।
ख़्याल ए यार चाँद सितारों वाले ,
हम शब ए माहताब से जल जाते हैं ।
आलम ए आफ़ताब से जलने वाले ,
शब् ए माहताब को शायराना ख़्याल कहते हैं ।
उफ़ ये दिन के उजालों का सफ़र ,
रात तन्हा बसर होती नहीं ।
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