घरों की रोशनी के वास्ते ही चरागों को जलाये रखता shayari in hindi,
घरों की रोशनी के वास्ते ही चरागों को जलाये रखता ,
इश्क़ का भरम टूटा नहीं था कम्बख्त भरम तो बनाये रखता l
बाद ए इश्क़ के भी अदावतें ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही हैं ,
यादें तेरी मुसलसल दिल पर मेरे नश्तर चुभा रही हैं l
हम जिनकी चाहत में बर्बाद हुए हैं ग़ालिब ,
वो हमारी मैय्यत में आके पूछते हैं ज़ौक़ ए मोहब्बत के अलावा माज़रा क्या हैl
खुद की जदो में जड़ें तलाश करता है ,
लुटा लुटा सा शहर इब्न ए इंसान को लूटने की हदें पार करता है l
नज़रे तरास लेती हैं चेहरा तेरा ,
ख़्वाबों की पलछिन वो साया अजनबी नहीं होता l
ख़ुलूस ए इश्क़ दिल में ही दबाये रखा ,
ज़िन्दगी की उम्रें रिश्तों में ज़ाया कर दी l
इतने ज़ख्म थे लफ़्ज़ों में न उतरते ,
गोया नासूर बनके ताउम्र जिगर में कसकते l
गुंचा ए गुल में डूबे न बाग़ ए बहार में ,
कोई तो हो जो बाब ए सुखन की विरासत सम्हाल ले l
तमाम उम्र की जद्दोज़हद थी ज़िन्दगी ,
कोई खुद रोया कोई अपने पीछे रोने वाले छोड़ जाता है ।
हर एक के हक़ के निवाले सियासी गुर्गे गटक गए ,
फ़क़ीर बोलता रहा बन्दे तेरी किस्मत खराब है ।
न खुशनुमा से मंज़र न बाग़ ए बहार हो ,
बस एक अरमान है गुलों का ज़मीन ओ आस्मां के आगे रंग ओ बू की दास्तान हो ।
रात की गिरह में दफ़न हैं कितने ,
दर्द के नग्मे और जिगर के छाले ।
बहिस्त की हूरों को रख ख़ुदा के वास्ते ,
दो वक़्त की रोटी ही बहुत है इब्न ए इंसान के वास्ते ।
जानवर में गर वेह्शत है बस पेट के वास्ते ,
गोया इंसान क्यों निकल पड़ा दहशत के रास्ते ।
फिरता है कोई, कोई दर दर कोई लुक्मा उड़ा रहा ,
बस पेट की हवस है इंसान इंसान के हक़ को खा रहा ।
बग़ावत है किसी में किसी में पेट का जुनून ,
हर शख्स है मज़बूर सा इस भूख के दरूं ।
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