चलने दो आतिशें हैं चलने दो love shayari,
चलने दो आतिशें हैं चलने दो ,
अभी शहर जला है थोड़ा दिल भी जलने दो ।
साहिलों से कह दो कभी दरियाओं से होकर गुज़रें ,
यूँ किनारों पर खड़े होकर रिश्ता निभाना भी कोई बात हुयी ।
यूँ दम बा दम साँसों का आना जाना ,
रिश्ता बस धड़कनो का दिल से नहीं होता ।
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झील की गहराइयों में उतर कर हमने देखा है ,
गिरते झरनों के पानी से पत्थर भी घायल हैं ।
रात के तोहफों की अदायगी होती गयी ,
ख्वाब फिर दिल फ़रेब सजने लगे ।
रात सरगोशियों में कहती गयी ,
गीत कुछ भूले ही गुन गुना लेना ।
तेरे होठों के तबस्सुम से हर बात बहक जाती है ,
रात चलती तो है देर तलक फिर सुबह जाने कहाँ अटक जाती है ।
साहिर के ख्यालों सा उनका आ जाना ,
शाम ढलते ही जैसे मौसिकी को कोई दर खुला न मिले ।
मेरे काँधे पर सर रख के सो लेती हैं ,
तेरी यादें मुझे तन्हा होने नहीं देती ।
न खुद सोती है न सोने देती है ,
मोहब्बत की तस्बीह बस मौत मुक़र्रर नहीं करती ।
हम खुद के मज़ारों में तन्हा जलते रहे ,
वो ख्यालों में गुज़रे हवा के झोकों सा ।
ये शायराना ख़्याल कहाँ से लाते हो ग़ालिब की तरह ,
कुछ अरमानो की लहरे तूफानों में सफक साहिल से भटक जाती हैं ।
रात टिमटिमाते जुगनुओं में कट जाती है ,
नज़ारों का सम्हलना कैसा पलकों का झुकाना कैसा ।
मैं चला हूँ तुम थोड़ा और आगे बढ़ लो ,
मेरा तार्रुफ़ बस हुआ तुम अंजाम ए मोहब्बत मुक़म्मल कर लो ।
मेरी मैय्यत में ये मज़मा क्यों है ,
बुझा बुझा हूँ ज़फर अभी बुझा तो नहीं ।
क्या समझेंगे उजालों में सफर करने वाले ,
ज़फर अंधेरों का फलसफा गहरा क्यों है ।
दरियाओं की सियासत को लहरें भी समझती हैं ,
बहती हैं साथ लेकिन साहिल को चूमती हैं ।
pix taken by google
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