चाँद के टुकड़े को रोटी का निवाला समझ sad shayari ,

0
1781
चाँद के टुकड़े को रोटी का निवाला समझ sad shayari ,
चाँद के टुकड़े को रोटी का निवाला समझ sad shayari ,

चाँद के टुकड़े को रोटी का निवाला समझ sad shayari ,

चाँद के टुकड़े को रोटी का निवाला समझ ,

आज भी सैकड़ों बच्चे फुटपाथ पर मुँह खोल के सो जाते हैं ।

 

थिगड़े लगे हैं माँ के लालों को अब भी ,

सड़सठ का हिंदुस्तान फुटपाथ पर ठिठुर के मर रहा

ghost protocol a short horror story 

कुछ बच्चों के हाँथ से खिलौने बचपन में छिन गए ,

फिर भी न अटा पेट क्या मज़दूरी भी छीन ली ।

 

शहर तो जल रहा है गोया धुआँ उगल रहा है ,

तू सिगरेट से कौन सा अब्र ए ग़म भीतर निगल रहा है ।

 

ख़ुद के सीने में चिमनियाँ जला कर ,

दूसरों के दिल में धुआँ झोकना ही शहर ए रवायत है ।

dard shayari 

सियासत कर गया कोई मेरे बेरंग मौसम से ,

आँधियों में उठती धूल भी सौंधी महकती थी

 

ज़मीन से फ़लक़ तक आतिश ए अम्बार लगा डाला है ,

सुखन ए अब्र को क्यों बारिश ए सियासत में भिगो डाला है ।

 

हम ख़्वाबों की फ़सल बोते हैं ,

गोया अब ख़्यालों में भी गर शोले गिरे ख़ुदा ख़ैर करे  ।

 

दिग्भ्रमित होंगे ग़र शूलों में चलने का कौशल नहीं ,

मैं पथिक का भ्रम हूँ मानवों से कोई मोह नहीं ।

 

उस घर में दिवाली के दिये में तेल नहीं दिल जलता है ,

जिस माँ का बेटा मादर ए वतन की खातिर सरहदों की निग़हबानी करता है ।

 

वो कहते हैं हम शहरों को संघाई बनायेंगे ,

वो भी फुटपाथ के बासिंदों को बेघर किये बग़ैर

 

चन्दन की चौखटों पर लटकती बेल को न देख ,

ये माहौल ए बू बदौलत सूखी छड़ी का है ।

 

बुझे घर की ख़ाक सजा लाया हूँ ,

इश्क़ में हुए बर्बाद अपनी मोहब्बत की तस्कीन बजा लाया हूँ ।

 

शब् ए फ़लक़ पर माहताब सजा रखा है ,

गोया फिर भी दिल में क्यों आफ़ताब जला रखा है ।

 

फिर सरहदों में रात गोलियाँ चली होगी ,

यूँ ही नहीं बच्चे आँगन में कारतूस खेल रहे ।

pix taken by google