छग्गन काका की हाँथ गाड़ी ,एक मासूम मजदूर की heart touching short story
छग्गन काका की हाँथ गाड़ी ,एक मासूम मजदूर की heart touching short story छग्गन काका गाँव के एक दलित
मजदूर थे , मजदूरी उनका सिर्फ व्यवसाय ही नहीं जीवकोपार्जन का एकमात्र साधन थी , छग्गन काका के दो छोटे छोटे
बच्चे थे मजदूरी से मिलता वो उससे अपना पेट भरते या फिर बच्चों का उस समय गाँव की स्कूल में मध्यान भोजन की
भी व्यवस्था नहीं थी जिससे बच्चे कम से कम एक वक़्त का भोजन तो पा जाया करते इसीलिए छग्गन काका और काकी
अपने बच्चों को मजदूरी के समय भी साथ लिए रहते थे , कभी कभी कोई मालिक दयावान मिल जाता तो उनके साथ
बच्चों को भी खाने का इंतज़ाम कर देता था , पहले तो गाँव में मजदूरी के नाम पर सिर्फ खाना ही दिया जाता था ,
मालिक बहुत दिलेर हुआ तो पुराने कपडे भी दे देता था , फिर हुआ यूँ की एक बार अकाल पड़ा भुखमरी के साथ महामारी
भी फैली , छग्गन काका निरा देहाती अनपढ़ था उसके बच्चे उसी महामारी में काल का ग्रास बन गए ,
छग्गन काका के परिवार के कुछ लोग शहर कमाने जाते थे , उन्होंने छग्गन काका को सलाह दी काका आप शहर में
जाकर काम क्यों नहीं करते यहां तो आप भूखे मर जाओगे
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मगर छग्गन की पुस्तैनी ज़मीन और झोपड़े का सवाल था , छग्गन काका ने मना कर दिया बोले बेटा अब तो मरना यही
है और जीना भी यही बपंस की ज़मीन है कैसे छोड़ दूँ , फिर हुआ यूँ की गाँव के ज़मीनदार का हुआ दलितों के ऊपर
दिमाग ख़राब और उन्होंने रातों रात पूरी बस्ती में आग लगवा दी , अब छग्गन काका ने देखा की गाँव में तो उनका कुछ
बचा ही नहीं एक झोपड़ा था वो जल गया , जान का खतरा बना है अलग से ,
अब छग्गन काका ने शहर का रुख किया काम के लिए भटके लोग उनकी शक्ल देखकर बोल देते काका तुमसे नहो
पायेगा हमें हट्टा कट्टा मजदूर चाहिए , बेचारे छग्गन काका परेशान हो गए अब काका और काकी ने पल्लेदारी करने की
सोची एक हाँथ ठेला किराये से लिए , काका ठेला खींचता काकी धक्का मारती , दोनों ने दिन रात खूब मेहनत की चना
चबेना खाकर दिन गुजार लेते एक वक़्त बस रात का खाना खाते , साल भर बाद काका ने खुद की हाँथ गाड़ी खरीद ली
दिन भर दोनों काम करते शाम को एक एक पाव देसी पीके सो जाते , दिन गुज़रते गए नगर निगम की अवैध ज़मीन पर
एक झोपड़ा भी तान लिए , दोनों अपनी ज़िन्दगी चैन से गुज़ार रहे थे की कुछ सरहंगों ने उनका झोपड़ा गिरा दिया बोले
ये अवैध कब्ज़े की ज़मीन पर बना है
फिर भी छग्गन काका ने हार नहीं मानी शहर के बाहर भी सरकारी ज़मीन पर लोगों ने घर बनाये थे वहीँ फिर एक झोपड़ा
तान लिया अब वही रहते हैं , गरीबी रेखा वाला बी पी एल का राशन कार्ड बनवाया कुछ गल्ला उससे मिल जाता है ,
बाकी काका खुद हाँथ गाड़ी चलाकर कमा लेता है अब छग्गन काका अकेला ही काम पर जाता है और काकी घर सम्हालती
है , इतने तक की कहानी मुझे पता थी अब आगे उनका क्या हुआ मुझे नहीं मालूम क्यूंकि छग्गन काका जिस गाँव के थे
उस गाँव का कोई भी शख्स इसके बाद न मिला न ही उनके मुताल्लिक़ जानकारी मिली ।
इतिशिद्धियेत
pix taken by google