जश्न ए आज़ादी में जाने कैसे कैसे कमाल हो गए patriotic poetry ,
जश्न ए आज़ादी में जाने कैसे कैसे कमाल हो गए ,
लोग चोर होकर के भी महान हो गए ।
उरूज़ पर है तेरे हौसले हवा का परचम भी ,
आज लहरा दे अमन हर एक शहर ए मीनारों पर ।
कभी पण्डित कभी क़ाज़ी कभी ईशा का अनुयायी ,
कभी मैं बुद्ध गौतम बन आस्मां से गुलों की पंखुड़ियाँ भी तोड़ लेता हूँ ।
कभी मरियम कभी ख्वाजा कभी गीता कभी बाइबिल ,
मैं कृष्णा मैं गुरुबानी मैं सूफी के तरानो में जिगर की तल्खियाँ भी तोल लेता हूँ ।
मैं हिन्दू भी मैं मुसलमान भी मैं सिख भी मैं पारसी भी ,
कोई गर और भी है वजूद ए रूह तो मुझको कफ़न दे दो ।
मैंने सोचा था बर्बादियों से बच के निकल जाऊँगा ,
मगर ज़माने में उल्फतों के बहुत दौर चले ।
लोग कहते हैं जहाँ में जब हम नहीं थे मोहब्बत बहुत थी ,
गोया जब ज़माने में वज़ूद ए ख़ाक है अपना तो न जाने मोहब्बत कहाँ गुम है ।
सियासत में मुर्दे बोलते नहीं बस ,
गोया पास से गुज़रो तो रूहें काट खाती हैं ।
सुन सीटियों के तान रेल की पटरियों पर दौड़ते बालक ,
चाय की केतली से भी हक़ ए क़ौम की बात करता है ।
जहाँ मुर्दे कफ़न बिन मर गए ,
लोग बुतों को चिन्दियों के हक़ की बात करते हैं ।
तुम उड़ाओ जश्न लूटें हम यहाँ बरबादियाँ ,
तल्खियाँ बन ज़ख्म चुभते टीस देती गर्दिश ए वीरानियाँ ।
कब्रों में सोये दिलों में छाले पड़ गए ,
फिर यहाँ इंसान कैसे बुत बना बैठा रहा ।
रंग कितने भी भरो ग़म तो ग़म ही रहते हैं ,
ज़र्द पत्तों का असर रूह से ख़ाक तलक ज़ख्मो को नम करता है ।
सारा शहर बुझा बुझा क्यों है ,
गोया कोई दर्द से आहें अब नहीं भरता ।
जले घरों की दबी राखों में ,
क्या कोई आह कोई मासूम भी नहीं होगा ।
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