जिस्म के फ़फ़ोलों को जिगर में छुपा रहा है alfaaz shayari ,

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जिस्म के फ़फ़ोलों को जिगर में छुपा रहा है alfaaz shayari ,
जिस्म के फ़फ़ोलों को जिगर में छुपा रहा है alfaaz shayari ,

जिस्म के फ़फ़ोलों को जिगर में छुपा रहा है alfaaz shayari,

जिस्म के फ़फ़ोलों को जिगर में छुपा रहा है ,

चाक दामन में अस्मत बचा रहा है ।

 

लाख ग़म के अँधेरे हों शहर भर के गली कूचों में ,

दिलों में जज़्बा ए इश्क़ की रोशनी को जलाये रखना ।

 

वर्क़ ए रानाइयाँ ग़ुलों पर मख़मली चादर ,

खिजां ए मौसम में कोई कैसे बनावटी मुस्कान तामीर करे ।

 

ठेकेदारों को इज़्ज़त की परवाह नहीं ,

वो तो मज़दूर ही सोचता है अधबिलोरा कारोबार है सामान उठाऊँ कैसे ।

 

लाव लश्कर और रसद की बेशुमारी में ,

शहर ए आदम की इज़्ज़त गयी भड़सारी में ।

 

ग़र नज़र ए करम हो तो रुख से पर्दा हटा दूं ,

इज़्ज़त दारों की शोहरतों पर सवाल उठा दूं ।

 

दरूं ए इश्क़ से फुरसत नहीं मिलती ग़ालिब ,

अच्छे खासे कारोबारी को लोग कहते हैं बेरोज़गार पड़ा है ।

 

इश्क़ ए कारोबारियों को लोग तवजज्जो क्या देने लगे ,

राह चलते मुशाफिर भी आशिक़ी में पागल होने लगे ।

bewafa shayari 

मज़लूम और मुफ़लिश की इज़्ज़त सरे राह रोज़ लुटना ,

ये बस मैं नहीं कहता ये दस्तूर ए ज़माना का है चलन ।

 

जाने किस महफ़िल ए रानाई की खातिर ,

दिन तनहा रातें उदास रहती है ।

सज़र के ज़र्द पत्तों का मौसम ए रानाई से वास्ता कैसा ,

हवा के रुख पर ही हरदम बड़े मदहोश रहते हैं ।

 

एक ख़लिश सी है सूरज की सख़्त किरणों से ,

गोया कड़ी धूप में हसीं चेहरों पर नक़ाब ए बंद रहता है ।

 

खामियाज़ा ए इश्क़ ये हुआ महफ़िल ए रानाइयां दमकी ,

हसीं चेहरों की सोहरत में चाँद तारे भी दाग़दार हुए ।

 

देखा मिजाज़ ए गुल और जश्न ए वादी ए बहार ,

उनके क़दम के रुख से तबीयत ए रानाइयाँ बदल गयीं ।

 

सफ़ेद पोश सियासियों के काले कारनामे ,

दिन के उजाले में अस्मत ए वतन भी बेंच देते हैं ।

dard shayari 

नक़ाब काला हो या सुफेद,

बन्दे की नीयत साफ़ होनी चाहिए ।

pix taken by google