जिस मुहाने से रोज़ तकते हो dard shayari,
जिस मुहाने से रोज़ तकते हो ,
गोया चाहे किरिया करवा लो उसके मार्फ़त तबाही की कोई लहर ही नहीं ।
तेरा हर लम्स अब भी धड़कता है मेरे सीने में ,
मगर शब् ए हिज्र सुलगे दिल में वो अंगार नहीं है ।
सुबह को देखना रात बहुत लंबी थी ,
आज फिर कदम तेरे कूचे पर लड़खड़ाए हैं ।
ज़ौक़ ए शायरी भी करते हो आबिद या खाली जाम के सरमाये हैं ।
सोते हो रत जगे हो या अधखुली आँखों में,
कोई ख्वाब सजाये बैठे हो ।
सुर्ख सफक उजालों में आदतें मेरी खराब कर कर के ,
दरमियानी रात के दायरे में कहते हैं सीधा घर को निकल जाओ ।
तुम तो बस शब् ए गुल की तरह खिलते हो,
जब भी मिलते हो क़यामत की तरह मिलते हो ।
इतना गज़ब न था तेरा रूठकर जाना ,
फिर अखर जाता है उन हसीं हादसों से गुज़र पाना ।
मोहब्बत की दुआओं से दम निकलता है ,
मर मर के भी अब आहें हम नहीं भरते ।
ये ख़ामोशी क्यों है कहाँ वो कहकशां है ,
चलो चिलमन हटाओ दिल का नशेमन जवां है ।
गरूर ए ताक में बैठा है दुश्मन ,
तू रहना सरफ़रोशी से , ज़रा झपकी पलक वो सर ज़मीन से नोच ले जाए ।
वो जो थे क्या कम थे ये जो हैं क्या कम हैं ,
मुझको दुनिया अच्छी नहीं लगती गोया उनको मोहब्बत की पड़ी है ।
गम ए दौरान सर्द रातों में सूखे दरख्तों पर लटकती रूहें ,
दर्द की टीस न सुन सका कोई अब तो दिल भी कठवा का हो गया होगा ।
वो जो बात बात में पूछते हैं तेरा मज़हब क्या है ,
गोया ज़राफत के लिए इब्न ए इंसान हूँ इतना क्या कम है ।
pix taken by google