तन्हा खून जम रहा है वादी ए गुल की रंगत का funny shayari ,
तन्हा खून जम रहा है वादी ए गुल की रंगत का ,
दो चार आदम ए लम्स की गरमाहट मिले तो फिर से बहार आ जाये ।
अधखुली पलकों के झीने चिलमन से ,
सुनहरी नींद के कुछ अधूरे ख़्वाब झलकते हैं ।
दो वक़्त की रोटी के लाले हैं ,
फसलें उगाने वाले किसानो के दिलों में मौसम ए गुल के छाले हैं ।
ज़मीने बंज़र किसान बेहाल ,
धधकती तर ज़मीन से धूधुर उचकती है ।
जाने हसरतों की फितना गीरी हैं कैसी कैसी ,
और कितनो का घर जलाओगे जाने कितनो का बर्बाद करोगे ।
ज़रा सी इमारतों से नीचे झुकी जो नज़र ,
यूँ सर ए राह नूर ए नज़र देख कर दिल ए नाचीज़ का नज़ारा बदल गया ।
ऐसा हुआ नहीं की बाग़ में बारिश न हुयी ,
फिर जाने कैसे रह गया महरूम दिल फसल ए गुल बहार से ।
बसते बसते ये शहर जो बढ़ गया ऐसे ,
ये गगन चुम्बी इमारतें झोपड़पट्टियों को भी निगल गयीं ।
मेरा मेरे दिल पर इख़्तियार नहीं ,
तू मेरी संजीदगी पर ऐतबार करे तो करे कैसे ।
फूट न जाएँ गमो के छाले ,
दिल में तेरा हर लम्स इस क़दर कसकता है ।
जो गुज़र गया वो बस लम्हा मेरा अपना था ,
बाक़ी के सब नग़मे बस फ़साने हैं ।
चाँद तारों पर जब भी तेरा ज़िक्र छिड़ता है ,
झिलमिल पालकी में सजी रात गज़ब की ख़ूबरू लगती है ।
मौसम ए तपिस से उतर आते हैं पहाड़ों से नदी नालों तक ,
बेज़बान नहीं जानते की ये शहर भी आदमखोरों से भरा है ।
हम बुझा के आये अपना आतिश ए शहर ,
चश्म ए तर चरागों से नशेमन की रोशनी के वास्ते ।
हमने देखे हैं तुम्हारी रंगीनियत के मिजाज़ ,
खुश्बू हवाओं में तुम्हारे पैग़ाम लेकर के आती है ।
वक़्त बेवक़्त तुम निकला न करो ,
शहर भर के मौसम की तासीर बदल जाती है ।
कभी समझते अगर दिल के हाल ए दलील को ,
तहरीर ए मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं था ।
pix taken by google
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