तलफ़्फ़ुज़ उनका हलक में अटका है one line thoughts on life in hindi
तलफ़्फ़ुज़ उनका हलक में अटका है ,
खामोशियों की जिरह इश्क़ की दास्तान सारे बोल रही ।
हर रोज़ जश्न ए ईद है हर रोज़ दिवाली ,
जो हैं नए नए वो इश्क़ ए अफ़रोज़ चख रहे ।
एक लफ्ज़ थी मोहब्बत बस फासला मचान ,
तेरे दर से मेरे दर तक सौ बरस लग गए ।
दिन का अपना कहकशां होता है ,
रात का सन्नाटा भी नहीं होता ।
छट गयीं बदलियां गम की थी ,
मौसम ए हिज्र के बाद बस खुशियों का रेला है ।
साहब ए सरकार अभी उम्र नहीं दर्द सहने की ,
वो कहते हैं अभी इश्क़ की दुधू भाती है ।
एक तो इश्क़ से गुरेज नहीं ,
ज़ालिम ने बेवफाई का ठीकरा भी मेरे सर फोड़ दिया ।
इश्क़ रह रह सताता है न दर्द ए तन्हाई ,
अब परचून की दुकानों में भी दिल के साइजों में लेमन चूस मिलते हैं ।
अब तो एक कलम भी नज़र नहीं करते ,
गोया कल तक जो नज़रों से सर कलम किया करते थे ।
रकम रकम के नुमाइंदे यक्जाई रहते हैं ,
ज़रा सी खुराफात पर यकबयक सियासी वार करते हैं ।
पत्थरों की ऊंची ऊंची इमारतें बस हैं ,
या तेरे शहर में आदम ए सूरत का निशाँ भी है कहीं ।
बुनियाद जिसने रखी वो रहने के क़ाबिल न था ,
जो रहने आया ईमारत में मुनियाद से पहले निकल गया ।
ईमारत बनाने से बस घर नहीं बनता ,
कुछ ईंटें भरोसे और ईमान की भी लगती हैं ।
घर दुकान महले दो महले रोज़ बनते शहर में ,
इस तरह पत्थरों की ईमारतों का एक जंगल तामीर होता गया इब्न ए इंसान के बीच में ।
शहरी ईमारतों में दिखती है बहसत सारी ,
जाने जंगल के बेज़बान कहाँ जायेगे ।
ज़बान ए साफ़ की खातिर निकला था डगर से ,
उर्दू से कदम ताल मिलते गए और शेर तामीर होते गए ।
pix taken by google
[…] https://www.pushpendradwivedi.com/%e0%a4%a4%e0%a4%b2%e0%a5%9e%e0%a5%8d%e0%a5%9e%e0%a5%81%e0%a5%9b-%e0… […]