तहरीर ए वक़्त की ग़ज़ल बनकर तू ग़ुम न हो जाए josh shayari,
तहरीर ए वक़्त की ग़ज़ल बनकर तू ग़ुम न हो जाए ,
तुझको सफ़ेहा सफ़ेहा शायर के हर्फ़ों में सजा लेता हूँ ।
वक़्त शिकन्दर है वक़्त पोरस भी ,
वक़्त के साथ अपाहिज़ भी निकल जाता है दरिया बनकर ।
वक़्त की फितरत है औक़ात बता देता है ,
परछाइयों के साये से खुद का वजूद पता चलता नहीं ।
इंसान को भीड़ में इंसान मिलता नहीं ,
अक्सर तन्हाइयों में अपना वजूद तलास करता है।
छुपा के रखा है तुझको वजूद में अपने ,
ज़माना लाख चाहे शैदाई बने ।
वज़ूद फ़िज़ाओं में लिखता हूँ इबारतों की तरह ,
हवाओं में तेरे अक़्स तरास लेता हूँ ।
ढूंढ लेता हूँ तुझको तेरी खुश्बू से ,
तेरी परछाइयों को सीसे में उतार लेता हूँ ।
काट लेता हूँ सख़्त से सख़्त चट्टानों को अपनी पलकों से ,
फिर तेरे बुत ए मुजस्सिम को दिल के मंदिर में बिठा देता हूँ ।
हर सुबह जिस्म की टूटती अंगड़ाइयों में सँवरता है चेहरा तेरा ,
तब कहीं जाकर अधूरी नींद की ख़ुमारी हटती है आँखों से ।
जिस्म से रूह तलक तू ही तू ,
मेरे ख़्वाबों की जुस्तजू में तू ही तू ।
तू ही हाल ए दिल बयानी में,
रगों के साहिलों में तू ही तू ।
तू रवां रवां सा है तू धुआँ धुआँ सा है ,
तू हक़ीक़त तू फशाना भी ।
तू ग़ज़ल तू तराना भी ,
तू लाख दूर सही दूर नहीं ।
तेरा वज़ूद आज भी ज़िंदा है मुझमें,
ये बात और है तू हरसू मेरे कहीं दिखता नहीं ।
तेरा वज़ूद है तू , मेरी धड़कनो में रमता है ,
एक तेरे सिवा दिल को मेरे कोई जंचता नहीं ।
वक़्त के पैबंद लगे हैं इतने ,
मुफ्लिशी में भी शहँशाही का नमूना है ।
आशिक़ों का हाल गज़ब होता है , रात चाँद तारों में कटती है ,
दिन तबस्सुम ए यार को बेक़रार होता है ।
जा दिल तोड़ने वाले तुझे तेरे होठों के तबस्सुम हो मुबारक़ ,
हम न गिला करेंगे न कभी आह भरेंगे ।
यूँ तो ज़माने भर की नैमतें साथ थी मेरे,
एक तेरे लब के तबस्सुम का दिल तलबगार खड़ा है ।
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देखती है नज़र भर के कारोबार ए जहन्नुम ,
दिल में सदा होठों में तबस्सुम आ ही जाती है ।
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