तेरे ख़्वाबों के शिकंजे में दम घुटता था good night shayari,
तेरे ख़्वाबों के शिकंजे में दम घुटता था ,
नींद से जागे तो थोड़ी राहत है ।
अक्सर मेरी तन्हाइयों में तेरा ही ज़िक्र होता है ,
याद आती है तेरी अब भी मगर वो फ़िक़रे नहीं होती ।
खनकते बर्तनों से दिलों के टूटने ज़िक्र होता है ,
फर्स पर फैले काँच के टुकड़ों से जिस्म ज़ख़्मी कम दिलों पर घाव ज़्यादा हैं।
मगर ज़ख्मों की परवाह अब किसको कहाँ है ,
गुज़र जाता हूँ बेफिक्र होकर उन टूटे लम्हों से ।
वो उल्फ़त ए दौर अपना था ,
अब दौर ए तग़ाफ़ुल यहाँ है ।
कभी नोक झोंक के लम्हे थे अपने ,
अब तन्हाइयों में तेरी यादें भी अपनी हैं ।
अधूरे ख्वाब अधूरे ज़ाम अधूरे लब पर अधूरी प्यास अपनी है ।
अब भी वक़्त गुज़र जाता है लम्हा लम्हा,
हर लम्हे में अब वो बेशब्री नहीं होती ।
तुझको होती होगी राह चलते काँटो की परवाह ,
मुझको तेरे तल्ख़ नज़रों के तीरों की परवाह नहीं होती ।
वो मेज़ पर रखा है प्याला है जिस पर तेरे सुर्ख लबों की लाली ,
साथ ही एक ज़ाम उल्टा है जो कल भी खाली था आज भी है खाली ।
क्या सेज़ नहीं सजती क्या महफ़िल ए रानाई नहीं होती ,
सजती है शाम पहले से बेहतर बस चरागों के उजालों के पार
दिलों की ख़ुशनुमायी नहीं होती ।
मेरी हर शाम पर रहता है ग़म ए ग़ुबार का असर ,
फिर बढ़ता जाता है अँधेरे में तुझसे तक़रार का क़हर ।
फिर सेहर होती है ग़ुल खिलते हैं ,
रोज़ नए ग़ुल अंजुमन में गुंचा ए ग़ुल से मिलते हैं ।
दिल में इक ख़लूस सा रहता है ,
गोया मोहब्बत रूहानी सुकून के सिवा कुछ भी नहीं ।
क्या ख़ाक जलाएगा ज़माना,
दिल जलों की राख में भी तबाही ए सैलाब भरा होता है ।
ऐसी कौन सी जागीर लेकर के जाएगा मेरे भाई ,
दो पल चैन ओ सुकून के भी तो जी लेता ।
ज़मीन ए ख़ाकसारी में उम्रें ज़ाया की ,
फिर उसी ख़ाक में मिल कर के रूहों को सुकून आया ।
pix taken by google
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